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दुखी भारत


फूल ला रहे हैं। पहले स्थानिक परिस्थिति के कारण बीमारियों के फैलने में बहुत कुछ रुकावट हो जाती थी और ये एक ही स्थान तक सीमित रहती थीं। परन्तु कांगो की नीति को सफल बनाने के लिए १७,००० सैनिक अपने स्त्रियों और सम्बन्धियों से पृथक करके कभी इस जिले में और कभी उस जिले में भेजे जाते थे। इन सैनिकों को जहाँ भी वे जायँ, स्त्रियां मिलनी चाहिए और इन स्त्रियों का प्रबन्ध उस जिले की आदि-जातियों के घरों से होना चाहिए। आदिनिवासियों की संस्थाओं, अधिकारों, रीति-रिवाजों की रक्षा करना एक अच्छे शासन का कर्तव्य होना चाहिए। पर इन सब बातों की अवहेलना की गई है।"

आइवरी रिजाइम की एक घटना का मिस्टर कैम्पबेल ने इस प्रकार वर्णन किया है:-

"कटोरो के पश्चात् एक दूसरे बहुत बड़े मुखिया पर आक्रमण किया गया। यह मुखिया पश्चिमी और पूर्वी लुभालबा के शिखर के समीप रहता था । भीड़ पर बिना किसी भेद-भाव के गोली चलाई गई। पन्द्रह मारे गये। इनमें चार स्त्रियाँ भी थीं और एक की गोद में बच्चा था। सिर काट लिये गये और स्थानापन्न अधिकारी के सम्मुख उपस्थित किये गये। उसने आज्ञा दी कि हाथ भी कार कर लाये जाय। ये सिर और हाथ छेदे गये, रस्सी में गूथे गये और पड़ाव की आग में सेंक कर सुखा लिये गये। इन सिरों को मैंने दूसरे बहुत से सिरों के साथ स्वयं अपनी आँखों से देखा था। नगर जो पहले अत्यन्त सम्पन्न था, जला दिया गया। और जो वे अपने साथ नहीं ले जा सके वह नष्ट कर दिया गया। लोगों की भीड़ गिरफ़्तार कर ली गई। इसमें अधिकतर बुडढी और युवती स्त्रियों थी। इस प्रकार रस्सी में बंधी तीन मुण्डों की और वृद्धि हुई। इन कैदियों के समूहों में केवल चमड़े और हड्डियाँ रह गई थीं। जब मैंने उनको देखा तब उनके शरीर बुरी तरह घायल किये गये थे। इसके पश्चात् चियम्बो नामक एक बहुत बड़े नगर पर आक्रमण किया गया। लोगों का एक बड़ा समूह मार डाला गया। उनके सिर और हाथ काट लिये गये और अफसरों के पास ले जाये गये।...इसके थोड़ी ही देर पश्चात् सरकार के काफिलों ने झण्डे उड़ाते हुए और बिगुल बजाते हुए मिशन के पड़ाव में प्रवेश किया। यह पड़ाव मेरू झील के किनारे लुआब्जा में था। उस समय वहाँ मैं अकेला था। मानव सिरों से भरी गहरी टोकरियों का शोकाकुल कर देनेवाला वह दृश्य मैं जल्दी नहीं भूल सकूँगा। युद्ध की स्मृति के लिए रख छोड़ी गई सिरों से भरी ये टोकरियाँ जब किसी बड़े युद्ध-