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दुखी भारत

गोरे के रोज़नामचे से मिस्टर गाइड ने निम्नलिखित वर्णन अपनी पुस्तक में दिया है:-

"एम॰ पाचा घोषित करते हैं कि मैंने बोदो के निकटवर्ती क्या लोगों का दमन-कार्य समाप्त कर दिया है। उनके अनुमान में सब आयु के मारे गये स्त्रीपुरुषों की संख्या एक हज़ार होगी। युद्ध का फल सूचित करने के लिए सैनिकों और सहयोगियों को यह आज्ञा दी गई थी कि वे पराजित मृतकों के कान और लिङ्ग-चिह्न काटकर लेते आवें। यह काण्ड जुलाई के मास में हुआ था।

"इन सब बातों के कारण रबर की कम्पनियाँ ही हैं। रबर के व्यापार की एक-मात्र अधिकारिणी तथा स्थानीय शासन में पूर्ण स्वतन्त्र होने से उन्होंने अफ्रीका के इन प्राचीन वासियों को बड़ी दुर्गति और गुलामी में फँसा रक्खा है।"

गोरे लुटेरों के पास जितने साधन हैं उतनी ही निठुराई से वे काम लेते हैं। इस युग्म के कारण वेचारा आदि-निवासी पूर्ण रूप से असमर्थ हो जाता है। मोरेल के इस निष्कर्ष में कोई अतिशयोक्ति नहीं प्रतीत होती कि:-

"इस प्रकार गोरों के जड़ देवता के सामने अफ्रीकावासी वास्तव में बिल्कुल लाचार हैं। ये जड़ देवता त्रिमुख है। अर्थात् साम्राज्यवाद, पूँजी-द्वारा लूट-खसोट-वाद और सेना-वाद। यदि गोरों ने इन देवताओं की पूजा जारी रक्खी और अपने ही समान अफ्रीकावासियों को भी इसकी पूजा करने के लिए विवश किया, तो अफ़्रीकावासी 'रेड इंडियन', 'कैरिब', 'गुआञ्ची', आस्ट्रेलिया के आदिनिवासी और ऐसी अन्य जातियों के मार्ग का अनुसरण करने लगेंगे। और यह तत्काल एक महाभयङ्कर पाप और विश्वव्यापी अशान्ति का रूप धारण कर लेगा।"

थोड़ा ही समय हुआ जब दो ब्रिटिश-न्यायाधीशों ने 'सीरा लिओन' नामक ब्रिटिश-रक्षित राज्य के तद्देशीय नरेशों के शासन में गुलामी की प्रथा को जारी: रखने का समर्थन किया था तब 'लभ्य' संसार के उदार-दल को बड़ा धक्का लगा था। कदाचित् इस बात पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया जाता कि अफ्रीकावासी को वहाँ भी ग़ुलाम बनने के लिए विवश किया जाता है जहाँ पहले कभी ग़ुलामी का नाम भी नहीं सुना गया। पूर्वी अफ्रीका में ब्रिटिश सरकार ने मसाई और अन्य जङ्गली जातियों के लिए कुछ भूमि विशेष रूप से पृथक