पृष्ठ:दुखी भारत.pdf/१९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

बारहवाँ अध्याय

प्राचीन भारत में स्त्रियों का स्थान*[१]

वैदिक-काल†[२]-इसमें सन्देह नहीं कि वर्तमान समय में स्त्रियों की जो स्थिति है वह वैदिक-काल की अपेक्षा बहुत गिरी हुई है। इस बात को प्रायः सभी स्वीकार करते हैं कि वैदिक-काल में पञ्जाब में आर्य स्त्रियों को अत्यन्त सम्माननीय ही नहीं अत्यन्त महान् पद भी प्राप्त था। इसके पश्चात् के समय में जो प्रभाव पड़े और जो परिवर्तन हुए उनसे यह स्थिति और अच्छी नहीं हुई, उलटा और बिगड़ गई‡[३] सूक्ष्म रूप से स्त्रियों और पुरुषों में क्या क्या सम्बन्ध होना चाहिए इस पर वैदिक साहित्य में कोई वाद-विवाद नहीं मिलता। ऋग्वेद में स्त्री को कुमारी, पत्नी और माता कहा गया है। और इन स्थितियों में उलके अधिकारों का बहुत संक्षिप्त वर्णन मिलता है।

कुमारी की दशा में स्त्री को भी रक्षा, भरण-पोषण और शिक्षा-सम्बन्धी वे ही अधिकार प्राप्त थे जो कुमारों को प्राप्त थे। जीवन का साथी चुनने में उनको वही स्वतंत्रता प्राप्त थी जो पुरुषों को थी। वेदों में विवाह के पूर्व कुमारों और कुमारियों के किसी न किसी प्रकार के प्रेमाभिनय का वर्णन मिलता है। 'कुमारों में कुमारियों के प्रति प्रेम' प्रकाश करने के अनेक उदाहरण मिलते हैं। उनके कुमारियों से विवाह की प्रार्थना करने और दोनों के पारस्परिक प्रेम' के भी वर्णन मिलते हैं। इस पद की पुष्टि के लिए ऋग्वेद

  1. * इस अध्याय का विषय मेरे दो लेखों से-जो जून और जुलाई १९१८ ईसवी के यंग इंडिया में प्रकाशित हुए थे-लिया गया है। यह मासिक पन्न: मेरे ही सम्पादकत्व में न्यूयार्क से निकलता था।
  2. † ईसवी सन् से १५०० वर्ष पूर्व का समय वैदिक-काल कहलाता है। १५० वर्ष पूर्व से ५०० वर्ष पूर्व तक महाभारत और रामायण-काल माना जाता है और ५०० पूर्व के आस-पास का समय सूत्र-काल कहा जाता है।
  3. ‡ रागोज़िन-कृत वैदिक-भारत (राष्ट्रों की कथा) प्रथम संस्करण।