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दुखी भारत


कारों में स्त्रियों के स्थान और अधिकार के सम्बन्ध में एक विचित्र मतभेद उपस्थित था। कुछ लोग प्राचीन आदर्शों को बनाये रखने के पक्ष में थे। परन्तु कुछ लोगों का झुकाव पुरुषों को स्त्रियों पर पूर्ण आधिपत्य देने के पक्ष में था।

अब तक तो हमने साधारणरूप में या पत्नी के रूप में स्त्रियों के स्थान के सम्बन्ध में विचार किया है। परन्तु जब हम उसके स्थान का उसके माता के रूप में विचार करते हैं तो तुरन्त उसे एक उच्चतर पद पर आसीन 'पाते हैं। और इस सम्बन्ध में सब स्मृतिकारों को भी सहमत देखते हैं। अध्याय दो श्लोक १४५ में मनु कहते हैं कि 'आचार्य्य (आध्यात्मिक गुरु) दस उपाध्यायों (साधारण शिक्षकों) से अधिक पूजनीय है। पिता सौ श्राचाययों से अधिक पूजनीय है। परन्तु माता पिता से भी सहस्रगुना पूज्य है और शिक्षा देनेवाली है। हिन्दुओं में मातृत्व पद एक अत्यन्त पवित्र पद माना गया है। सम्पूर्ण प्रकृति में वे इस पद का आदर करते हैं। अपने स्त्रीत्वसम्बन्धी गुणों के अनुसार प्रत्येक स्त्री एक संभावित माता है। इसलिए प्रत्येक स्त्री को, जो अपनी पत्नी, पुत्री, या बहनन हो लोग माता कहकर संबोधित करते हैं। अपरिचित स्त्रियों से बातचीत करते समय हिन्दू सर्वदा उन्हें 'माता' कहते हैं। कभी-कभी वे 'बहन' भी कहते हैं। परन्तु बहन की अपेक्षा माता ही अधिक कहते हैं। देवियों में माताओं की सबसे अधिक पूजा होती है और कभीकभी उन्हें देवताओं से भी उच्च स्थान दिया जाता है। इसी प्रकार जन्म-भूमि। की भी मातृ-भूमि कहकर पूजा की जाती है। इसी से मिस मेयो ने अपनी पुस्तक का व्यङ्गपूर्ण नाम रक्खा है।

हिन्दू लोग साधारणतया अपने बच्चों पर बड़ी ममता रखते हैं। इसमें सन्देह नहीं कि इस नियम के विरुद्ध भी उदाहरण मिल जायेंगे। भारतीय इतिहास के अत्यन्त अन्धकारमय समय में कतिपय प्रधाएँ उत्पन्न हो गई थीं। वे प्रथायें यद्यपि कुछ ख़ास ख़ास वर्गों तक ही परिमित हैं परन्तु वे अपने जन्मदायकों और अनुयायियों के लिए अत्यन्त निन्दा की कारण हैं। वे प्रथायें सती, शिशु-हत्या, विधवाओं के साथ अत्याचार, बाल-विवाह, बहुविवाह, कन्या-विक्रय और कन्याओं को देवार्पण कर देने आदि की हैं। ईसाईधर्म-प्रचारक लोग इन प्रधाओं पर कभी कभी बड़ा गहरा रङ्ग चढ़ा देते हैं और