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दुखी भारत

के पश्चात् यदि पुनर्जीवित रहते हैं तो वे उसकी सम्पूर्ण जायदाद पर अधिकार कर लेते हैं पर उन्हें उस जायदाद से कुटुम्ब की स्त्रियों का पालन-पोषण करना पड़ता है। यदि वे इस बात की अवहेलना करते हैं और जायदाद बेच डालते हैं तो उस कुटुम्ब की स्त्रियों के पालन-पोषण का भार भी उसी जायदाद के साथ उस मनुष्य पर जा पड़ता है जो उसे खरीदता है। यदि पुत्र नहीं जीवित रहते तो मृतक की विधवा उस जायदाद की अधिकारिणी होती है। सम्पूर्ण आय को स्वेच्छानुसार व्यय करने का उसे अधिकार रहता है। परन्तु उस जायदाद को वह किसी दूसरे के नाम नहीं लगा सकती। ऐसा वह केवल कानूनी आवश्यकता आ पड़ने पर या अपने पश्चात् के उत्तराधिकारी की अनुमति से ही कर सकती है। उसकी मृत्यु के पश्चात् उसकी पुत्रियाँ उस जायदाद की अधिकारिणी होती हैं और उन्हें भी वही अधिकार प्राप्त रहते हैं जो माता को थे। इसी प्रकार यदि भाई नहीं तो भी माता ही उत्तराधिकारिणी होती है।

किसी स्त्री की निजी सम्पत्ति की उत्तराधिकारिणी उसकी सन्तान (पुत्र और पुत्रियाँ) होती हैं। यदि कोई सन्तान न हो तो कतिपय दशाओं में पति और कतिपय दशाओं में उसके पिता के कुल के लोग उस सम्पत्ति को पाते हैं।

गोद लेने का अधिकार-हिन्दू स्त्री को किसी बालक के गोद लेने का पूर्ण अधिकार रहता है। वह अपने पति की मृत्यु के पश्चात् उसके लिए भी गोद ले सकती है। पर उसी दशा में जब उसने अपनी जीवितावस्था में उसे ऐसा अधिकार दे दिया हो या उसके (पति के) आत्मीय जन इसे स्वीकार कर लें।

शिशुओं के संरक्षण का अधिकार-कतिपय परिस्थितियों में सा को अपनी सन्तान, पुन और पुत्रियाँ दोनों, के संरक्षण का अधिकार रहता है। कन्याओं का विवाहादि निश्चित करनेवाले संरक्षकों में उसकी भी गाना होती है।

सन्तति पर अधिकार-हिन्दू-धर्म-शास्त्रों में सन्तानोत्पत्ति, सन्तान-पालन और सन्तान पर अधिकार-विषयक नियम बड़े विस्तृत हैं। ईसाई-साधु-संघों और ईसाई-धर्म-शास्त्रों के बीच में पलकर जो बड़े हुए हैं उन्हें ये नियम विचित्र से प्रतीत होंगे। परन्तु यदि ये कुल और वंश-विज्ञान-सम्बन्धी आधु-