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पृष्ठ:दुखी भारत.pdf/२१

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विषय-प्रवेश

चमत्कार की खोज में भी न हो, केवल भारतवर्ष की भीतरी बातों की जाँच करना चाहता हो पर किसी के द्वारा और कहीं नियुक्त न किया गया हो, तो वह उस देश में अजीब शक्ल का प्राणी जान पड़ेगा और विशेष कर जब उस अजनबी की प्रश्न करने की तीक्ष्ण-प्रवृत्ति हो उठे। मैं इस बात का विश्वास दिलाना चाहती हूँ कि मैं न तो दूसरों के मामलों में व्यर्थ पड़ने-वाली काहिल स्त्री हूँ, और न राजनैतिक दलाल हूँ। मैं केवल अमरीका की एक साधारण प्रजा हूँ जिसका काम सच्ची बातों को खोजकर अपने भाई-बहनों के सम्मुख उपस्थित करना है।"

वह इस बात को स्वीकार करती है कि इंडिया आफ़िस ने उसे परिचय-पत्र देने में ज़रा भी सुस्ती नहीं की। यहाँ ज़रा सन्देह होता है। लेकिन कुछ और भी बातें हैं जो मुझे पूछने पर मालूम हुई हैं। १९२६ ई॰ के शीतकाल में जब मिस मेयो दिल्ली में थी वह भारत सरकार के एक सदस्य और उसकी पत्नी की अतिथि बन कर रहीं। भारत में कम से कम एक सरकारी गृह में तो उसकी मेहमानी अवश्य की गई। बड़ी व्यवस्थापिका सभा में भारत-सरकार के 'होम-मेम्बर' ने यह स्वीकार किया है कि भारत के सरकारी अफसरों ने उसकी ख़ातिर और सहायता की। यद्यपि वे ज़ोरदार शब्दों में कहते हैं कि जो सहायता की गई या जो सद्‌भाव प्रदर्शित किया गया वह उससे भिन्न नहीं था जो अन्य प्रकाशन-कर्ता या यात्री के साथ किया जाता है। केवल अपने चेहरे की क़ीमत पर यह बयान नहीं माना जा सकता जब कि हम मिस मेयो को यह स्वीकार करते हुए देखते हैं कि वह कभी एक ज़िला कमिश्नर के साथ उसके अनेक कार्य्य के दौड़ों पर जाती थी, कभी वह किसानों की ग्राम-पञ्चायत में बैठती थी या कभी वह म्युनिस्पल बोर्ड की मीटिङ्ग में सम्मिलित होती थी। एक अमेरिकन स्त्री जो इस देश से बिलकुल अनभिज्ञ है, जो इसकी देशी भाषाओं को बिलकुल नहीं जानती! किसानों की ग्राम-पञ्चायत में कैसे सम्मिलित हो सकती है जब तक कि इन (सम्भवतः पहले से प्रबन्ध करके बुलाई गई) पञ्चायतों में अँगरेज़ी जाननेवाला कोई भारतीय अफ़सर अपने किसी बड़े अफ़सर की आज्ञा से उसे ले न जाय?