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स्त्रियाँ और नवयुग


समय में स्त्रियों को मध्य-विक्टोरियन काल से पूर्व प्रत्येक समय की योरपीय स्त्रियों की अपेक्षा समाज में कहीं अधिक उच्च स्थान प्राप्त था।

वैदिक काल में प्रत्येक बात में स्त्री पुरुष के बराबर समझी जाती थी। बुद्धि से काम लेने और अपने स्वार्थों को समझने की प्रायु प्राप्त कर लेने पर वह अपना पति चुनती थी! विधवाओं को पुनर्विवाह करने से कोई रोकता नहीं था। सर हरबर्ट रिसले जैसे विद्वानों ने इस बात को स्वीकार*[१] किया है। कतिपय दशाओं में वैदिक भारत की स्त्रियाँ वर्तमान योरपियन स्त्रियों से भी अधिक स्वतंत्र थीं।

योरप में स्त्रियों को अभी हाल में स्वतंत्रता मिली है। बहुत समय नहीं हुआ जब 'स्त्रियों के निर्वाचन' की बात कोई जानता ही नहीं था। एक समय में यह बात भी बहुत कम लोग मानते थे कि स्त्रियों के श्रात्मा होती है।

आधुनिक विज्ञानयुग के पूर्व योरप में अत्यन्त समुन्नत-काल वह था जब रोमन लोग सब बात के कर्ता-धर्ता थे। रोमन्स के योरप में स्त्री केवल विलास की सामग्री मात्र थी। रोमन कानून में कतिपय दशाओं में स्त्रियों को वही स्थान प्राप्त था जो मध्यकालीन भारत की स्त्रियों को प्राप्त था। और कतिपय अन्य दशाओं में उससे भी निम्न स्थान प्राप्त था। भारतवर्ष में यह स्थिति तब थी जब इस देश का राजनैतिक हृास हो रहा था। योरप में यह स्थिति तब थी जब रोमन लोग अपनी राजनैतिक प्रधानता के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचे हुए थे।

रोम की प्रधानता के समय में स्त्रियों की क्या स्थिति थी इस प्रश्नपर विचार करते हुए एक लेखिका†[२] लिखती है-"स्त्री से इस बात की आशा की जाती थी कि वह यावज्जीवन अपने पिता, पति या अन्य संरक्षक के अधीन रहेगी और बिना उनकी आज्ञा के कुछ न करेगी। निःसन्देह प्राचीन काल में यह अधिकार इतना बड़ा था कि बिना सार्वजनिक रूप से स्त्री का न्याय हुए पिता या पति

  1. *सर हरबर्ट रिसले भारतीय जातियों के अनुसन्धान करनेवालों में प्रमुख व्यक्ति थे। इस विषय में उनकी मुख्य पुस्तक भारत की जातियाँ' नामक थैकर स्पिंक कलकत्ता के यहाँ से प्रकाशित हुई है। भारत सरकार के संसस कमिश्नर भी थे।
  2. † यूजिन ए॰ हेकर-स्त्री-अधिकारों का संक्षिप्त इतिहास-इंगलैंड और अमरीका के विशेष वर्णन के साथ (फुटनम १९११) पृष्ठ २।