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दुखी भारत

कुटुम्ब के लोगों की राय लेकर उसकी हत्या कर सकते थे। स्त्रियों पर संरक्षम की इतनी पराधीनता का कारण यह था कि वे 'स्वभाव की चञ्चल होती थीं, 'शरीर से निर्बल होती थीं' और 'राजनियमों से अनभिज्ञ होती थीं।'

रोमन राज्य में वैवाहिक नियम क्या थे? इस सम्बन्ध में उस लेखिका ने निम्न बातें लिखी हैं*[१]:-

"समस्त दक्षिणी देशों की भाँति-जहाँ स्त्रियाँ कम आयु में ही युवती हो जाती हैं-रोम में भी बालिकाओं का प्रायः कम आयु में ही विवाह कर दिया जाता था। रीति के अनुसार बारह वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने पर वह विवाह के योग्य समझी जाती थी। प्राचीन काल में तीन भिन्न भिन्न उपायों द्वारा स्त्रियाँ पनी बनाई जाती थीं। (१) विक्रय-प्रहसन द्वारा (२) शपथ द्वारा। यह विवाह एक विचित्र संस्कार के साथ होता था और जो इस रीति से विवाह करते थे वे स्त्री पुत्र समेत पादरी होने के योग्य समझ लिये जाते थे। (३) कुछ समय तक एक साथ निवास-द्वारा। इस नियम के अनुसार कोई भी स्त्री किसी मनुष्य की पत्नी समझ ली जाती थी, यदि बह उसके साथ एक वर्षपर्यन्त रह लेता था और इस समय के भीतर चह एक के बाद दूसरी, ऐसी तीन रातों से अधिक के लिए उससे पृथक नहीं होती थी।"

दूसरी शताब्दी में कुछ परिवर्तन हुआ। उस दशा में कोई पुरुष स्वयं उपस्थित न हो तब भी विवाह कर सकता था। परन्तु स्त्री नहीं कर सकती थी। स्त्री के माता-पिता या संरक्षक उसके लिए वर का प्रबन्ध कर देने के आदी हो गये थे। योरप के अधिकांश भागों में अब भी ऐसा ही होता है। विवाह के सम्बन्ध में कन्या की स्वीकृति भी आवश्यक समझी जाती थी। पर दबाव डालकर यह सम्मति लेने में माता-पिता की शक्ति परिमित†[२] थी।

योरप में ईसाई-धर्म के विचारों से स्त्रियों का स्थान ऊँचा उठाने में बिलकुल सहायता नहीं मिली। मिस हेकर ने लिखा है कि जेनेसिस के मतानुसार स्त्री ही मनुष्य-जाति के पतन का कारण है‡[३] सेंट जेरोम का यह कहना था

  1. * उसी पुस्तक से, पृष्ठ म८,९।
  2. † उसी पुस्तक से, पृष्ट १०।
  3. ‡ उसी पुस्तक से, पृष्ट ५३।