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स्त्रियाँ और नवयुग

वैवाहिक जीवन के समय में स्त्री अपने नाम पर जायदाद-सम्बन्धी काई लिखा-पढ़ी नहीं कर सकती। विवाहिताओं की संपत्ति-रक्षा का कानून––जिससे पत्नी की संपत्ति पर पति के पूर्ण अधिकार का अन्त हो जाता है––इँग्लैंड में सभी थोड़े ही समय हुए १८८२ ईसवी में पास हुआ था[१]

इससे भी अधिक ध्यान देने योग्य वह बात है जो मिस हेकर स्वीकृति आयु के संबन्ध में लिखती है:––

"इस संबन्ध में ईसाई सभ्यता पर अत्यन्त शोचनीय कलङ्क वह है जो 'कानून से स्वीकृति की आयु' के नाम से पुकारा जाता है। प्राचीन साधारण कानून के अनुसार यह आयु केवल १० या १२ वर्ष मानी जाती थी। १८८५ में यह १३ वर्ष थी। उस उम्र में एक बालिका से यह आशा की जाती थी कि वह अपने कर्तव्य को जानती है। परन्तु १८८५ ईसवी में मिस्टर स्टीड ने लन्दन की जनता से स्पष्ट रूप से कह दिया कि अपरिपक्व आयु की बालिकाओं के साथ शताब्दियों से अत्याचार किया जा रहा है और इस भयङ्कर सत्य को हम सब भली भांति जानते हैं। इसके पहले इस बात को स्वीकार करने का किसी ने साहस नहीं किया था। परिणाम यह हुआ कि पार्लियामेंट ने स्वीकृति की आयु कानून-द्वारा बढ़ा कर सोलह वर्ष कर दी। यह आयु अब भी यही मानी जाती है[२]।"

यह बात सबको भली भाँति मालूम है कि इँग्लैंड में स्त्रियों को उच्च शिक्षा देने का आन्दोलन भी उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध-काल में आरम्भ हुआ है। स्त्रियों को मताधिकार मिलने का आन्दोलन तो अभी बिल्कुल हाल की बात। और इसके सम्बन्ध में अभी कुछ लिखने की आवश्यकता भी नहीं प्रतीत होती।

मिस मेयो के देश में

अभी अभी १८८० ईसवी तक अमरीका में रेबरेंड नाक्स लिटिल के

समान व्यक्ति मौजूद थे जिसने फिला डेलफिया के गिरजाघर में व्याख्यान देते


  1. उसी पुस्तक से, पृष्ठ १३२।
  2. उसी पुस्तक से, पृष्ठ १३८।