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दुखी भारत

हुए कहा था कि 'पत्नी बनने में ही स्त्री का महान् गौरव है।······पति के प्रति उसका यह कर्तव्य है कि वह आँख मूँद कर पति की आज्ञाओं का पालन करे। ऐसा कोई पाप नहीं है जिसमें पुरुष के पड़ जाने पर स्त्री-द्वारा उसका त्याग न्यायोचित कहा जा सकता है। पति के किसी भी पाप के कारण स्त्री को विवाह-विच्छेद जैसी भयङ्कर वस्तु की प्रार्थना न करनी चाहिए[१]। बड़े लोग चाहे वे भारतवर्ष में हो चाहे अन्यत्र इससे अधिक और क्या माँग सकते हैं?

स्वीकृति की आयु बढ़ाने के संबन्ध में एक गैर सरकारी बिल पर बड़ी व्यवस्थापिका सभा में कुछ अत्यन्त कट्टर सदस्यों के व्याख्यानों को लेकर मिस मेयो ने बहुत कुछ शोर गुल मचाया है। यह बिल एक हिन्दू मेम्बर द्वारा उपस्थित किया गया था। परन्तु सरकारी सदस्यों की ओर से विरोध होने के कारण यह बिल पास नहीं हो सका। विवाह के लिए कम से कम आयु नियत कर देने के लिए दूसरा बिल बड़ी व्यवस्थापिका सभा के एक हिन्दू सदस्य रायबहादुर हरविलास शारदा द्वारा उपस्थित किया गया था। सरकारी सदस्यों द्वारा इसका भी घोर विरोध किया गया। इस समय यह सेलेक्ट कमेटी में है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि ब्रिटिश-सरकार की ओर से विरोध होते हुए भी उन्नति के विचार बड़ी शीघ्रता के साथ प्रबल हो रहे हैं। और यह तो बिल्कुल प्रत्यक्ष बात है कि कुछ अपरिवर्तनवादी लोग ऐसी बातों का सदैव ही विरोध करेंगे। भारतवर्ष के ही संबन्ध में यह कोई विशेष बात नहीं है। १८५२ ईसवी में ब्रिटिश-पार्लियामेंट में रेल-निर्माण के विरुद्ध एक प्रस्ताव पर विचार हुआ था। हाउस आफ़ कामन्स में नेपियर ने जहाज़ी बेड़े में भाप की शक्ति के प्रथम प्रयोग का विरोध किया था। स्काट ने रोशनी के लिए गैस की निन्दा की थी। बाइरन ने कविता में इसकी हँसी उड़ाई थी। इस बात में मिस मेयो का बोस्टन नगर सबसे बाजी मार ले गया, जब १८४५ ईसवी में इसके म्यूनिसिपल बोर्ड ने एक प्रस्ताव पास करके चिकित्सा के अतिरिक्त अन्य सभी अवस्थाओं में स्नान के टबों को गैर कानूनी घोषित कर दिया था।


  1. उसी पुस्तक से, पृष्ठ १५१।