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स्त्रियाँ और नवयुग

की ओर से जो विरोध हुए हैं उन्हें देखते हुए वह वर्तमान भारतीय शासन पद्धति की स्तुति करने का विचार नहीं कर सकती थी।

वर्तमान भारतीय विधान के अनुसार भित्र-भिन्न व्यवस्थापिका सभाओं के सदस्यों को यह स्वीकृति मिल गई है कि वे स्त्रियों को भी मताधिकार दे सकते हैं। यद्यपि यह अधिकार अभी हाल ही में प्राप्त हुआ है तथापि बहुत सी बड़ी बड़ी व्यवस्थापक-सभाओं ने इसका प्रयोग करना आरम्भ कर दिया है। परिणाम यह हुआ है कि अधिकांश प्रान्तों में स्त्रियों को प्रान्तीय अथवा केन्द्रीय व्यवस्थापिका सभा के लिए मत प्रदान करने या निर्वाचन के लिए खड़ी होने का अधिकार मिल गया है। मिस मेयो का यह कहना सत्य है कि हमारी व्यवस्थापिका-सभाओं में स्त्री-सदस्यों की संख्या अस्यन्त न्यून है, परन्तु क्या हम पूछ सकते हैं कि अमरीका के सिनेट में स्त्री-सदस्यों की संख्या कितनी है? स्त्रियों को मताधिकार मिलना एक बिल्कुल नई बात और इसको सम्भव रूप धारण करने में अभी देर लगेगी। ब्रिटिश के हाउस आफ़ कामन्स के ७०० सदस्यों में केवल चार स्त्रियाँ हैं। परन्तु भारतवर्ष में शिक्षित स्त्रियों को अत्यन्त सम्मान के पद प्रदान किये गये हैं। डाक्टर मधु लक्ष्मी रिद्दी मदरास की व्यवस्थापिका सभा की उपसभानेत्री निर्वाचित हुई हैं। भारतवर्ष की राष्ट्रीय महासभा दो स्त्रियों को अपना सर्वोच्च आसन दे चुकी है। श्रीमती एनी बीसेन्ट को और श्रीमती सरोजनी देवी नायडू को। कांग्रेस के सभापति का आसन ही सर्वोच्च सम्मान है जो गैर सरकारी भारतवर्ष किसी को प्रदान कर सकता है। और स्त्रियाँ इस सम्मान से वञ्चित नहीं रक्खी गई। इस प्रश्न पर राष्ट्रवादी भारतवासियों के प्रगतिशील दृष्टिकोण की यह निश्चित पहचान है।