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सोलहवाँ अध्याय
देवदासी

मिस मेयो जिन कुप्रथाओं की ओर ध्यान आकर्षित करती है उनमें एक 'देवदासियों' की उपस्थिति भी है। इसमें सन्देह नहीं कि यह प्रथा अत्यन्त घृणित है। परन्तु यहाँ भी मिस मेयो ने अपनी कल्पना से ही काम अधिक लिया है। उसकी पुस्तक के ५१ वें तथा ५२ वें पृष्ठ पर लिखा है:–

"देश के कुछ भागों में विशेषतः मदरास-प्रान्त में और उड़ीसा में हिन्दुओं में एक ऐसी प्रथा प्रचलित है जिसके अनुसार माता-पिता अपने किसी उद्देश्य की सिद्धि में देवताओं से सहायता प्राप्त करने के लिए यह प्रतिज्ञा करते हैं कि यदि उनका कार्य सिद्ध हो जायगा तो वे अपनी प्रथम संतान को, यदि वह लड़की हुई, देवताओं को भेंट कर देंगे। या कोई विशेष सुन्दर कन्या अपने कुटुम्ब में अनावश्यक समझी जाने के कारण देवताओं को भेंट कर दी जाती है। छोटी बालिका इस प्रकार मन्दिर की स्त्रियों को सौंप दी जाती है। ये स्त्रियाँ भी उसी के समान दान-स्वरूप मन्दिर में आई हुई होती हैं और उसे नाचना तथा गाना सिखाती हैं। वह बालिका प्रायः पाँच ही वर्ष की आयु में, जब वह भोग के लिए अत्यन्त उपयुक्त समझी जाती है, पुजारी की वेश्या बन जाती है।

"यदि वह इसके पश्चात् जीवित रह जाती है तो दैनिक पूजा के समय नाचती है और गाती है। विशेष अवसरों पर जो भक्त लोग आते हैं वे मन्दिर के आस पास के घरों में कुछ देने पर जब चाहें उसके साथ विषय-भोग कर सकते हैं। अब वह सुन्दर पोशाक पहने रहती है और देवताओं के रत्नाभूषणों से लदी रहती है। जब तक उसका सौंदर्य नष्ट नहीं हो जाता तब तक वह बड़ा चञ्चल जीवन व्यतीत करती है। इसके पश्चात् जिस देवता की सेवा में वह रहती है उसकी मुहर के साथ वह मन्दिर से निकाल दी जाती है। जीविका के लिए उसे एक प्रकार का अल्प वेतन भी मिलता पर वह यथेष्ट नहीं होता। इससे वह जनता पर अपना भार रख देती है और उसे भिखारी-वृत्ति करने का स्वीकृत अधिकार भी रहता है। उसके माता-पिता धन-धान्य से सम्पन्न हो सकते हैं, उच्च श्रेणी के और