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नि:शुल्क शिक्षा

किनेयर्ड कालिज नामक एक दूसरे कालेज की फ़ीस भी इसी प्रकार बहुत अधिक है। इस कालेज में १३० छात्राएँ छात्रावास में रहती हैं और १२० बाहर।

वास्तव में कोई भी व्यक्ति, जो भारतीय स्थितियों से परिचित है, इस बात का हठ नहीं कर सकता कि धनी भारतीय अपनी बालिकाओं के लिए निःशुल्क शिक्षा चाहते हैं और उनकी शिक्षा के लिए कुछ व्यय करने को तैयार नहीं हैं। यह बिल्कुल प्रमाण-रहित और मिथ्यारोप है।

अपनी पुस्तक के १३२ वें पृष्ठ पर मिस मेयो ने विक्टोरिया गर्ल्स स्कूल लाहौर की अध्यक्षा मिस दोस से निम्नलिखित बातें कहलाई हैं मिस मेयो के कथनानुसार इस स्कूल ५०० छात्राएँ हैं:––

"पढ़ाई की फ़ीस! ओह! यह तो केवल नाम-मात्र को है। हम भारतवासी अपनी पुत्रियों की शिक्षा के लिए कुछ नहीं ब्यय कर सकते।...यह स्कूल सरकार की सहायता और व्यक्तिरूप से प्राप्त इँगलैंड के चन्दों से चल रहा है।"

अन्तिम कथन कहाँ तक सत्य है? इसका पता दीवान बहादुर के॰ पी॰ थापर ओ॰ बी॰ ई॰ की निम्न लिखित चिट्ठी से चल जाता है:––

प्रिय लाला लाजपतराय जी,

आपका विक्टोरिया गर्ल्स स्कूल लाहौर के सम्बन्ध में पत्र प्राप्त हुआ। जब इस स्कूल को सरकार ने अपने अधिकार में ले लिया था और इसे प्रान्तीय रूप दे दिया गया था तब अर्थात् १८८७ ईसवी से १९१४ ईसवीं तक इसका मंत्री था। मेरा निवेदन है कि इस सम्पूर्ण समय में को कोई आर्थिक सहायता न तो इंगलैंड से प्राप्त हुई थी और न योरप के किसी दूसरे देश से।

पञ्जाब एसोसिएशन––प्रान्तीय सरकार की वार्षिक सहायता और स्थायी कोष की आय से––इसका प्रबन्ध करता था। स्थायी कोष रजवाड़ों और प्रान्त के रईसों के दान का फल था।

लाहौर:––आपका प्रेमी
के॰ पी॰ थापर

इससे मिस मेयो के एक और झूठ का भण्डाफोड़ हो जाता है।

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