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अठारहवाँ अध्याय
पश्चिम में कामोत्तेजना

भारतवासियों के विषय-भोग-सम्बन्धी कल्पित पापाचार का विस्तृत वर्णन करने में मिस मेयो को विचित्र आनन्द आता है। समस्त चञ्चल पत्रकार उन बातों को जानते हैं जिनसे कथाओं में रहस्य उत्पन्न किया जा सकता है। उनकी पुस्तक का उद्देश यह होता है कि लोग 'गम'––एक प्रकार की गोंद-मिश्रित मिठाई––चूसते जायँ और उन्हें पढ़ते जायँ। अमरीका की बहुत सी पुस्तकों की दुकानों पर यह 'गम' भी रहता है और सबसे अधिक बिकता है। भारतवर्ष में मिस मेयो ने 'व्यक्तिगत रूप से' जो अनुसन्धान किये हैं उनमें अधिकांश ऐसे हैं जो 'विषय-भोग' की बातों से सम्बन्ध रखते हैं। उसने सरकारी पुस्तकों और अङ्कों से जो उदाहरण दिये हैं उनसे कोई बात सिद्ध नहीं होती है और उसके हवाले भी सम्माननीय नहीं हैं। कम से कम तब तक सम्माननीय नहीं हैं, जब तक आप एबे डुबोइस और उसकी पुस्तक को सम्माननीय प्रमाण न स्वीकार कर लें। मुख्यतः उसने इधर-उधर की बातों से ही–कदाचित् अपनी निजी कल्पना से भी–काम लिया है। और कभी कभी हमारे सामने वह ऐसी बातें रखती है जो बिल्कुल व्यर्थ और निकम्मी प्रतीत होती हैं। फिर भी वह एक 'साहसी' महिला है। उसके पुस्तक के साथ सहानुभूति रखनेवाला एक ब्रिटिश समालोचक उसके सम्बन्ध में हमें यही बतलाता भी है। इसलिए वह एक राष्ट्र के धर्माचरण के सम्बन्ध में अपनी सम्मति बनाने में ज़रा भी नहीं झिझकती। वह कीचड़ में लोटने की प्रबल इच्छा के बिना उसे नहीं देख सकती। चाहे वह वास्तविक हो, चाहे काल्पनिक।

फिर भी मिस मेयो की रचना का यह भाग थोड़े में ही नहीं छोड़ा जा सकता। क्योंकि उसके तर्क का अत्यन्त महत्त्व-पूर्ण अङ्ग यही है। और जो