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पश्चिम में कामोत्तेजना

लोग भारतीय जातियों के विरुद्ध मिथ्या-दोषों को लेकर आन्दोलन कर रहे हैं वे इन बातों को बड़ी गम्भीरता के साथ प्रयोग करते हैं।

मिस मेयो सोचती है कि 'हिन्दुओं के आर्थिक और आध्यात्मिक दुःखों का मूलकारण उनका विषय-भोग-सम्बन्धी पापाचार ही है।' उसकी समझ में भारतवासियों की मानसिक ग़ुलामी, ग़रीबी, मूर्खता, राजनैतिक छुटाई, वेदना, असफलता आदि बुराइयों का कारण केवल उनका विषयी जीवन है।

अपनी बातों को सिद्ध करने के लिए मिस मेयो ने किंवदन्तियों और अस्पतालों में पहुँची घटनाओं का सहारा लिया है। परन्तु यदि अस्पताल की घटनाओं से–और उनमें भी बुरी से बुरी चुन करके–किसी बात की जाँच की जा सकती है तो कदाचित् भारतवर्ष पश्चिम के देशों से बुरा न प्रतीत होगा और न अच्छा ही। किंवदन्तियों से आपको मनोरञ्जक और सनसनी-पूर्ण कथायें मालूम हो सकती हैं, परन्तु गम्भीरता के साथ विचार करनेवाले लोग इन पर विश्वास नहीं कर सकते।

कल्पना कीजिए कि कोई पूरा अजनबी ३० करोड़ मानवों से बसे भारत जैसे विशाल देश में जाता है। भिन्न भिन्न भागों में उसे भिन्न भिन्न रवाज दिखलाई पड़ते हैं। अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं पर उस अजनबी को एक का भी ज्ञान नहीं है। वह चारों तरफ यात्रा करता है और बारह महीने में ही पूरी यात्रा समाप्त कर देता है। तब पुस्तक लिखने बैठ जाता है। और लोगों के जीवन की उन बातों को लिखता है जो अत्यन्त घनिष्ठ मित्रों को ही ज्ञात हो सकती हैं। तब अपने निजी 'अनुभवों' और लोगों से 'बेधड़क' की गई बातों के आधार पर सम्पूर्ण राष्ट्र के विरुद्ध घातक कलङ्कों की रचना करता है। निस्सन्देह इस काम के लिए बड़े 'साहस' की आवश्यकता है। पर इसके साथ ही कथा में जिन अल्प-संख्यक व्यक्तियों का नामोल्लेख किया गया है उनमें से अधिकांश की बातों को ठीक ठीक न उद्धृत करने का 'साहस' भी जोड़ दीजिए तो आपको मिस मेयो के वक्तव्यों का आपही मूल्य मालूम हो जायगा।

पाश्चात्य देशों पर दोषारोपण करने की हमारी बिल्कुल इच्छा नहीं है परन्तु मिस मेयो ने भारतवर्ष के स्त्री-पुरुष-सम्बन्धी धर्माचरण की जो व्याख्या