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दुखी भारत

रही है––बर्लिन में यह १७ प्रतिशत और कुछ दूसरे नगरों में इससे भी अधिक है––बरन आधी या उससे अधिक विवाहितायें भी अपने विवाह-सम्बन्ध से पूर्व ही गर्भ धारण कर लेती हैं। इस प्रकार बर्लिन में नियमानुकूल जो शिशु जन्म ग्रहण करते हैं उनमें भी ४० प्रतिशत ऐसे होते हैं जिनका गर्भाधान विवाह से पूर्व हो चुकता है। परन्तु देहातों में (जहाँ अनुचित सम्बन्ध से उत्पन्न शिशुओं की जन्म-संख्या शहरों के मुकाबिले में कम होती है) गर्भाधान के पश्चात् होनेवाले विवाहों की संख्या बर्लिन के मुकाबिले में बहुत अधिक होती है। जर्मनी के देहातों में इस बात की एक कमेटी द्वारा विशेष रूप से जांच की गई थी। कुछ वर्ष हुए इस कमेटी ने अपने अनुसन्धान को दो भागों में प्रकाशित किया था। इन पुस्तकों से जर्मनी के इंद्रियगत धर्माचरण की बहुत सी बातें मालूम होती हैं। इस ग्रन्थ में हनोवर के संबन्ध में लिखा गया है कि वहाँ विवाह के पूर्व पारस्परिक सहवास का नियम है। कम से कम विवाह के पूर्व एक दूसरे की परीक्षा कर लेने के लिए तो सहवास आवश्यक ही समझा जाता है। क्योंकि 'थैले में बन्द सुअर को खरीदना कोई पसन्द नहीं करता।'............सक्सोनी में एक जर्मन पादरी से कहा गया कि 'यहाँ कोई बिना आज़माये एक पाई की चिलम भी नहीं खरीदता।' दूसरे जिलों और राज्यों के सम्बन्ध में भी यही बात कही जाती है। 'कानून के अनुसार विवाह करनेवाली स्त्रियों में अक्षतयोनि कुमारियों की संख्या अधिक नहीं होती' (यह बात विशेष कर ब्रिटेन के सम्बन्ध में कही गई है) परन्तु ये बातें ऐसी हैं जिन्हें लोग वैवाहिक पवित्रता के अनुकूल समझते हैं।

यह बात मानने के योग्य है या नहीं और स्वतंत्र विचारकों की सम्मति श्रेष्ट है या मठाधीशों की––ये प्रश्न हमारे वर्तमान विषय के बाहर के हैं। हमारे विषय से जो बात सम्बन्ध रखती है वह केवल इतना ही स्मरण रखना है कि भारतवर्ष में सम्भोग का अवसर विवाह के बहुत पश्चात् प्राप्त होता है और पाश्चात्य देशों में विवाह के बहुत पूर्व। इस देश की और पाश्चात्य देशों की वैवाहिक आयु की तुलना करते समय इस बात को सदैव दृष्टि के समीप ही रखना चाहिए।