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दुखी भारत

·········इस अनुमानित ९० प्रतिशत के सम्बन्ध में मुझे जितने प्रमाण मिले हैं, सब एक-स्वर से इस बात की पुष्टि करते हैं।·········"कुछ बालिकायें ऐसी होती हैं जो जिन बालकों के साथ घूमने निकलती हैं उनसे ऐसा करने का हठ करती हैं। और ऐसे रोमाञ्च उत्पन्न करनेवाले सुखों की खोज में छिपे छिपे चतुराई के साथ उतनी ही अग्रसर रहती हैं जितने कि स्वयं बालकगण!"

इस प्रकार के आलिङ्गन, चुम्बन और नृत्य का अर्थ है अत्यन्त कामोद्दीपन और शरीर के तन्तुओं पर गहरा दबाव। जज महोदय कहते हैं कि बालिकाओं में जो तन्तु-सम्बन्धी बीमारियाँ और कतिपय विशेष प्रकार की शारीरिक पीड़ायें पाई जाती हैं वे इन्हीं 'परिचित बातों' के परिणाम-स्वरूप उत्पन्न होती हैं। इसके पश्चात् जज महोदय कुछ प्रख्यात चिकित्सकों की सम्मतियाँ देते हैं कि 'इस प्रकार के अर्द्ध सम्भोग का प्रभाव बालिकाओं के शरीर और मन पर इतना गहरा पड़ता है कि वे पूर्ण सम्भोग की शिकार-सी प्रतीत होने लगती हैं।'

परन्तु चुम्बन, आलिङ्गन और नृत्य आरम्भ की बातें हैं। इनसे ही अन्त नहीं हो जाता। 'जो लोग चुम्बन और आलिङ्गन आरम्भ कर देते हैं उनमें कम से कम ५० प्रतिशत यहीं तक नहीं रुके रह सकते। वे और आगे बढ़ते हैं और विषय-भोग-सम्बन्धी दूसरे प्रकार की ऐसी स्वतंत्रता भी लेने लगते हैं जो समस्त सभ्य समाजों में बोर अनुचित समझी जाती है।'

पूर्ण रूप से इन्हीं बातों में निमग्न हो जानेवालों की भी कमी नहीं है। 'जो लोग आलिङ्गन और बुम्बन से आरम्भ करते हैं उनमें १५ से लेकर २५ प्रतिशत तक सीमा पार कर जाते हैं।' अधिकांश में इसका यह अर्थ नहीं है कि एक एक बालिका का कई कई बालकों से सम्बन्ध हो जाता है या ऐसी बातें प्रायः होती रहती हैं। परन्तु यह सत्य है कि ये घटनाएं होती रहती हैं। जज साहब इसी सिलसिले में लिखते हैं कि 'मैं यही कह सकता हूँ कि ये अङ्क हाई स्कूल के छात्रों और छात्राओं के हैं। और इतने सत्य हैं कि इनमें परिवर्तन नहीं किया जा सकता।'

जज लिंडसे को बाल-माताओं से प्रायः काम पड़ता रहता था। क्योंकि अनके जज होने के कारण सभी उनसे विपरीत परिस्थितियों में सम्मति लेने