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पश्चिम में कामोत्तेजना

आती थीं। १९२०-२१ में डेनबेर की बालकों की अदालत में हाई स्कूल में पढ़ने योग्य आयु की "७६९ बालिकाओं पर पथ-भ्रष्ट होने का मुकदमा चलाया था। ......उनकी आयु १४ से १७ वर्ष तक थी।"

"उन ७६९ बालिकाओं के मुकदमों में कम से कम २,००० मुकदमे प्रत्यक्ष रूप से सम्मिलित थे। इसका एक कारण यह था कि लड़के से भी जवाब तलव करना पड़ता था। फिर इसके अतिरिक्त उन दोनों के घनिष्ठ मित्रों का दल अलग ही होता था। उनमें से अधिकांश गुप्त रूप से ऐसे ही अनुभवों में आनन्द लेनेवाले होते थे। इस प्रकार यह दुराचार एक बालिका से दूसरी तक और एक बालक से दूसरे तक पहुँच जाता है। मैंने ऐसे बहुत से बगल के मार्गों का सहारा लिया है जिनसे मुझे इस सम्बन्ध में खोज होने की कुछ भी आशा प्रतीत हुई। परन्तु यह एक ऐसी अँधेरी गुफा के अनुसन्धान के समान था जिसमें अनेक अन्त-रहित मार्ग होते हैं और जिसके बरामदों तथा रहस्यों का पता लगाते लगाते अन्वेषकों का धैर्य छूट जाता है।"

और भी बहुत सी बातें हैं जिनसे जज लिन्डसे ने निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले हैं:––

"जहाँ एक बालिका के विषय-भोग-सम्बन्धी अपराध का भण्डाफोड़ होता है वहाँ बहुत-सी पूर्ण रूप से बच जाती हैं। उदाहरण के लिए हाई स्कूल में पढ़ने योग्य आयु वाली ४९५ बालिकाओं ने (यद्यपि सब हाईस्कूल में नहीं थीं) मुझसे कहा था कि बालकों के साथ विषय-भोग का अनुभव चे कर चुकी हैं। पर इनमें से केवल २५ गर्भवती हुई। यह केवल ५ प्रतिशत होता है अर्थात् बीस में एक का औसत है। दूसरी बालिकानों ने गर्भ नहीं धारण किया। कुछ ने सौभाग्य से और कुछ ने उसे कृत्रिम उपायों के द्वारा इस प्रकार कृत्रिम उपायों के द्वारा गर्भ रोकने की बातें बालिकाओं को खूब मालूम हैं। जितना लोग समझते हैं उससे भी बहुत ज्यादा।

"अब ध्यान देने की प्रथम बात यह है कि उन लगभग ५०० बालिकाओं की सूची की तीन चौथाई मेरे पास अपने आप आई थीं। कोई किसी कारणवश आई, कोई किसी कारणवश। कुछ गर्भवती थीं। कुछ रोगग्रस्त थीं। कुछ को पश्चात्ताप हो रहा था। कुछ सलाह लेना चाहती थीं। इसी प्रकार कुछ न कुछ प्रयोजन सब का था। दूसरी बात यह है कि उनका मेरे