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विषय-प्रवेश

२—इस दल के मुख्य समाचारपत्र 'टाइम्स' ने एक आवश्यक विरोध-पत्र*[१] को, जो उस समय लन्दन में जितने प्रभावशाली सरकारी और गैर सरकारी भारतीय थे सबके हस्ताक्षर के साथ भेजा गया था, छापने से साफ़ इन्कार कर दिया। पत्र का विषय यह था :—

"हमारा ध्यान मदर इंडिया नामक पुस्तक की ओर आकर्षित किया गया है। यह पुस्तक हाल ही में छपी है और इसे अमरीका की देश-घूमने वाली मिस कैथरिन मेयो नाम की एक महिला ने, जो १९२५-२६ के शीतकाल में भारत गई थी, लिखा है। भारतीय सभ्यता और चरित्र को इस प्रकार झूठ मूठ कलङ्कित करने वाली विवेकशून्य पुस्तक पढ़ने का हमें इसके पहले कभी दुर्भाग्य नहीं हुआ।

"हम यह मानते हैं कि शीतकाल के अन्य यात्रियों की भांति मिस मेयों का भी अपनी सम्मति बनाने और प्रकट करने का अधिकार था। परन्तु जब एक विदेशी यात्री जो हमारे देश में कुछ महीनों से अधिक नहीं लगाता, अस्पताल में पहुँची घटनाओं से इकट्ठा कर, फ़ौजदारी के मुकदम्मों की रिपोर्टो से चुनकर और स्वयं अपने निरीक्षण की एकान्त घटनाओं से लेकर सामग्री जुटाता है, और प्रासङ्गिक प्रकरणों से उद्धरण देकर अपनी रक्षा का प्रयत्न करता है तथा ऐसी निर्बल नींव पर प्राचीन संस्कृति से युक्त भारत जैसे विशाल देश की सभ्यता और आचरण के विरुद्ध एक व्यापक कलङ्क तैयार करना चाहता है तो हमारा विरोध करना आवश्यक हो जाता है।


  1. उस पत्र पर भारत के प्रधान कमिश्नर, सर ए० सी० चटर्जी, वायसराय की कार्यकारिणी सभा के भूतपूर्व सदस्य सर तेजबहादुर सप्रू, बम्बई गवर्नर की कार्यकारिणी सभा के भूतपूर्व सदस्य सर चिमनलाल सिटालवड, बिहार उड़ीसा के गवर्नर की कार्यकारिणी सभा के भूतपूर्व सदस्य श्रीयुत सच्चिदानन्द-सिंह, सर एम० एम० भोवानाग्री, श्रीयुत दुबे बैरिस्टर जो प्रिवी कौंसिल में मुक़दमें लड़ते थे, शाही कृषिकमीशन के सदस्य मिस्टर कमट, भारत-सचिव की कौंसिल के सब भारतीय सदस्य अर्थात् सर मुहम्मद रफ़ीक़, श्रीयुत एस० एन मलिक और डाक्टर परांजपे; इन सब महानुभावों के हस्ताक्षर थे। यह पत्र प्रसिद्ध व्यक्तियों का आवश्यक वक्तव्य था फिर भी टाइम्स ने इसे नहीं छापा। और रूटर की समाचार भेजने वाली प्रचारसमिति ने भी इसका बिलकुल प्रकाशन नहीं किया।