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दुखी भारत

बोझों से बचकर निकल जाना किसी मनुष्य के लिए इतना आसान नहीं है।' स्कोपेन हेर ने भी यही सम्मति प्रकट की थी।

ऊपर से देखा जाय ते पश्चिम में विवाह की जो प्रथा है वह एक आनन्दमय और पूर्ण विकसित प्रेम-विवाह की प्रथा प्रतीत होगी। परन्तु मैक्स नार डौ के समान विद्वान् ने इसे 'विवाह का ढकोसला'-मात्र कहा है। नार डौ का ख़याल है कि ऐसे विवाहों की संख्या ७५ प्रतिशत से कम नहीं है जो 'सुविधा के लिए विवाह' के नाम से प्रसिद्ध हैं और वे वास्तव में प्रेम-विवाह नहीं हैं। जार्ज हर्थ (ब्लाच द्वारा उद्धृत) का अनुमान है कि यह संख्या और भी ऊँची होगी।

इसलिए प्रोफेसर ब्रूनो मेयर के प्रमाण के साथ एलिस के इस कथन को पढ़कर हमें आश्चर्य नहीं करना चाहिए कि 'आज-कल जितने सहवास होते हैं उनमें आधे से अधिक कानूनी विवाह के बाहर होते हैं[१]

इन बातों को स्वीकार करते हुए योरप के स्वतन्त्र विचारक लोग विवाह की अपेक्षा निम्न दर्जे का विषय-सम्बन्ध स्थापित कर लेने की और इसी भाँति के अन्य पारस्परिक सम्बन्ध जोड़ने की सलाह दे रहे हैं। ये उदार सुधारक इस बात के लिए योरप और अमरीका में बढ़ते हुए विवाह विच्छेदों को एक बड़ी भारी दलील के रूप में उपस्थित करते हैं।

एलिस[२] का कथन है कि 'आज-कल के स्वेच्छानुसार किये गये सन्तानरहित विवाह यह प्रकट करते हैं कि कानूनी विवाह के बाहर भी ऐसे सम्बन्ध सम्भव हो सकते हैं। और श्रीमती पार्सन्स के मतानुसार इस प्रकार के ये स्वतन्त्र सम्बन्ध विवाह का स्थान ग्रहण करने के लिए बड़े वेग से अग्रसर हो रहे हैं।'

पाश्चात्य नगरों में विषय-भोग एक वैज्ञानिक रूप से संगठित और

अत्यन्त उन्नतिशील व्यवसाय हो गया है। एक फ्रांसीसी लेखक श्रीयुत पाल ब्यूरो ने हाल ही में लिखी अपनी 'सदाचार का दिवाला' नामक पुस्तक में


  1. एलिस, उसी पुस्तक से, पृष्ठ ३७७
  2. उसी पुस्तक से, पृष्ठ ३७७-८८। डाक्टर एल्सी क्लूज़ पार्सन का उल्लेख उसकी पुस्तक-दी फेमिली पृष्ठ ३५१ के लिए है।