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पश्चिम में कामोत्तेजना


भूमि से पतन होता है या जो वहां से भटक जाती है या भग निकलती है, यह समाज अपनी ओर आकर्षित करता है, अपने में हजम कर लेता है और उसे अपना स्वीकार कर लेता है।......वर्तमान समय में यह अनियमित संसार अपने पूर्ण रूप से विकसित हो उठा है और नव-युवकों को यह पतितसमाज अत्यन्त प्रिय हो गया है। क्योंकि यहां प्रेम करने में उतनी कठिनाई नहीं है जितनी कि उच्च श्रेणियों में है; और व्यय भी इतना नहीं करना पड़ता जितना कि निम्न श्रेणियों में।"

ब्लाच की सम्मति यह है कि आज 'डेमी-मोंडियों' का मूल्य बहुत बढ़ गया है। 'वे ऊँचाई पर स्थित दस हज़ार जनों की वेश्याएँ हैं। ये आधुनिक अर्द्धवेश्याएँ आधुनिक उच्च कोटि के जीवन की एक विशेषता हैं।' आधुनिक समाज में इस अर्द्ध-वेश्या-दल की व्यापकता का वर्णन करते हुए ब्लाच कहते हैं—'चाहे हम घुड़दौड़ में जायँ, चाहे प्रथम रात्रि के थियेटरों में जायँ, चाहे बड़े दानी पुरुषों के बाज़ार में जायँ, चाहे गुप्त नृत्य में जायँ, चाहे विनोद के लिए समुद्र-तट पर जायँ, चाहे 'मोंटीकरलो' और फ्नोरल के त्योहार-उत्सवों में जायँ, सर्वत्र हमें यह अर्द्ध-वेश्या-दल दिखाई पड़ेगा और इसकी सदस्याएँ सौंदर्य में, केश-विन्यास में, देखने में, संस्कृति में, बातचीत में, उच्च समाज की महिलाओं से किसी प्रकार न्यून नहीं प्रतीत होती। ब्लाच फिर कहते[१] हैं कि यह अद्ध-वेश्या-समाज सार्वजनिक जीवन में अपना बड़ा हाथ रखता है। हमारे युग की सबसे बड़ी शक्ति—समाचार-पत्रों की शक्ति—के साथ पेरिस की डेमी मोंडी का बड़ा प्रभावोत्पादक सम्बन्ध है। जो पत्रकार इन अर्द्ध-वेश्याओं की सेवा में रहते हैं उनको जार्ज डाहल्न ने 'प्रेसी फ़्रिडोडिन' कहा है। क्योंकि उनकी लेखनी का मूल्य रुपयों से नहीं, सुसज्जित कमरों में प्रेमालिङ्गनों से चुकाया जाता है जिसके लिए बड़े बड़े लोग तरसते रहते हैं।'

राष्ट्र-निरीक्षण-संघ के मिस्टर डब्ल्यू॰ ए॰ कूट कहते हैं कि वर्तमान लन्दन की तुलना अब से ४० वर्ष पूर्व के लन्दन से की जाय तो यह खुले मैदान में उपासना के समान प्रतीत होगी[२]


  1. उसी पुस्तक से, पृष्ठ ३४७।
  2. स्वामी की समस्या, जेम्स मारचैंट लिखित। (मोफ़द एंड यार्ड, न्यूयार्क, १९१७) पृष्ठ १८६।