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दुखी भारत

परन्तु तब भी वर्तमान अवस्था यथेष्ट रूप से बुरी हो गई है। फ्लेसनर का कहना है कि ट्रैफ़ैलगर स्कायर के पड़ोस में और वहाँ से निकलनेवाली सड़कों पर, आक्सफोर्ड सरकस में, रिजेंट स्ट्रीट में, और भिन्न-भिन्न रेलवे स्टेशनों पर स्त्रियाँ बड़ी सरलता से प्राप्त हो जाती हैं[१]

उसी लेखक का कहना है कि वर्तमान समय में वेश्या-गृहों की अवस्था शोचनीय है। वहाँ स्त्रियों को छिपे छिपे, अस्थायी और अशान्तिमय जीवन व्यतीत करना पड़ता है। कतिपय स्थानों में वे थपकी आदि देकर शरीर की थकावट दूर करने की दुकानों की आड़ में काम करते हैं। कहीं स्नान-गृह, कहीं भाषाएँ या व्याख्यान देना सिखाने के गृहों का रूप धारण किये हुए हैं। लोगों को आकर्षित करने के लिए प्रातः, दिन या शाम के समाचार पत्रों में छोटे-छोटे विज्ञापन दिये रहते हैं।

ये वेश्या-गृह प्रायः चिकित्सा-भवनों के नाम से अपना काम करते हैं[२]। इनमें काम के घंटों में कुछ 'दायियां' और उनकी 'सहायक स्त्रियां' होती हैं। यदि ग्राहक इनमें किसी को पसन्द नहीं करता तो इन गृहों से सम्बन्ध रखनेवाली अभ्य स्त्रियों के चित्र दिखलाये जाते हैं। चित्र देखकर ग्राहक जिस स्त्री को पसन्द करता है वह बुलवाई जाती है। इस गुप्त व्यभिचार ने अब भयङ्कर रूप धारण कर लिया है। 'शाप असिस्टेंट' ने परिस्थिति की ओर निम्नलिखित टिप्पणी लिखकर जनता को सावधान किया है[३]:—

"दूकानों में काम करनेवाली सहस्रों कुमारियों की क्या दशा है? वे अत्यन्त अल्प वेतन पर काम करती हैं। वह वेतन इतना भी नहीं होता कि वे उससे अपने शरीर और आत्मा की रक्षा कर सकें। इस प्रकार काम करनेवाली यदि कुछ कुमारियाँ अच्छे घरों में रहती हैं तो इसका यह अर्थ है कि उन्हें अपने माता-पिता से वेतन के अतिरिक्त भी कुछ आर्थिक सहायता मिल जाती है। परन्तु जिन कुमारियों के कोई नहीं होता, जिन्हें जीवन-संग्राम में अपने ही निर्बल साधनों का भरोसा रहता है, उन्हें इस


  1. उसी पुस्तक से, पृष्ठ १८६।
  2. उसी पुस्तक से, पृष्ठ १८७।
  3. मारचैंट-द्वारा उद्धृत उसी पुस्तक से, पृष्ठ १८८।