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दुखी भारत

पिचीज़ रोज़ेज़' २५ सेंट में। 'लेस ऐडवेंचर्स डुराय पौज़ले' या 'मैरेटी' ९५ सेंट में। 'ला मार्ट डे सेक्सेज़' या 'अफ्रीडिट' या 'लेस डेमी विरजेज़' या 'जर्नल ऊनी फेमी डे चैम्बर' या......प्रसिद्ध लेखकों के समस्त प्रेमपन्यास ३ फ्रैंक ५० सेंट प्रति के हिसाब से ख़रीदे जा सकते हैं। अश्लील पुस्तक लिखने में किसी प्रकार का अनादर नहीं समझा जाता। कई संस्करण निकल जायँ तो और भी अच्छा। इस प्रकार प्रसिद्धि प्राप्त लोगों को विश्वविद्यालयों में स्थान मिल सकता है या कम से कम 'क्राइक्स डे आनर' का सम्मान तो मिलता ही है। कभी कभी ये माननीय लेखक महाशय अपरिपक्व आयु की कुमारियों के, कोई चोट पहुँचने या गर्भ-पात के, मुक़दमों में जज बनाकर बैठाये जाते हैं परन्तु जान पड़ता है कि इन अपराधों की गिनती केवल युवावस्था की भूलों में की जाती है जिन्हें उदार जज महोदय बड़ी सरलता के साथ क्षमा कर देते हैं। और कुछ आक्षेप करने योग्य कृत्यों का उनके सुन्दर साहित्यिक जीवन पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। इतनी ही सरलता से वे ऐसे समझौते भी कर लेते हैं जिनसे उन्हें कुछ राजनैतिक लाभ होता है।........."

अतः इस बात पर पाठकों को आश्चर्य नहीं करना चाहिए कि एम॰ ब्यूरो की पुस्तक में वर्णित आधुनिक सभ्य-समाज की कुमारी को अन्त में यह कहना पड़ा कि 'कैसी थकानेवाली बात है! इतना अश्लील साहित्य पढ़ने के पश्चात् अब मुझे कोई ऐसी वस्तु पढ़ने को नहीं मिलती जो मेरे गालों पर लज्जा की लाली दौड़ा सके।' एम॰ ब्यूरो इसी सिलसिले में लिखते हैं[१]

"इन पर्चों और पुस्तकों के सस्ती होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति उन्हें सरलतापूर्वक खरीद कर पढ़ सकता है। पाठकों की बड़ी संख्या है। तम्बाकू और समाचार-पत्रों की दुकानों में, पुस्तकालयों में, तथा स्टेशन पर पुस्तक बेचनेवालों के पास ऐसी पुस्तकों का ढेर लगा रहता है। इस अश्लील साहित्य के अतिरिक्त इससे भी अश्लील साहित्य होता है जो थोड़े में सन्तुष्ट न होनेवाले व्यभिचारियों और विशेषकर ऐसी ही वस्तुएँ संग्रह करनेवालों के लिए होता है। 'लायन्स' और पेरिस के सूची-पत्रों में ऐसी अश्लील पुस्तकों का विज्ञापन मिलता है एक सूची-पत्र में ११४ मिन्न-भिन्न पुस्तकों का विज्ञापन है जिनका मूल्य २० फ़्रैंक प्रति पुस्तक तक है। दूसरे में २२९ पुस्तकों


  1. उसी पुस्तक से, पृष्ठ ४०––४२।