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दुखी भारत

पन्नों को देखने की सलाह दी जाती है जिनमें कि अत्यन्त अश्लील पुस्तक मालाओं का विज्ञापन रहता है।'

"पुलिस भी इस गन्दे व्यापार की ओर से आँखें बन्द किये रहती है। यह ऐसी समस्यायें उपस्थित कर देता है कि जिसकी भयङ्करता का जनता को अनुमान तक नहीं होता। एम॰ इमाइल पोर्सी का कहना है कि इन अश्लील चित्रों के प्रभाव से हृदय में बड़ी अशान्ति उत्पन्न हो जाती है और जो अभागे व्यक्ति इन्हें खरीदते हैं वे अत्यन्त भयङ्कर पापाचार करने के लिए काम-उत्तेजित हो उठते हैं। इन चित्रों आदि का प्रभाव बालकों और बालिकाओं पर तो और भी भयङ्कर पड़ता है। इन्हीं के कारण हमने अनेक कालिजों के छात्रों और छात्राओं को शरीर तथा मन दोनों से बर्बाद होते देखा है। बालिकाओं के सर्वनाश का तो इससे प्रबल उपाय और हो ही नहीं सकता। स्वयं व्यभिचार में लिप्त स्त्री-पुरुषों पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है––उसके सम्बन्ध में हम कुछ नहीं कहेंगे। इनको तो ये तुरन्त अनाचार और नाश के गड्ढे में ढकेल देते हैं।"

इन अश्लील प्रकाशनों द्वारा केवल सदाचार को धक्का ही नहीं लगता बरन इनसे मनुष्य को सब प्रकार के अनाचारों की शिक्षा भी मिलती है। मिस मेयो ने कुछ शैव-मन्दिरों की नङ्गी मूर्तियों को लेकर बड़ा शोर मचाया है। परन्तु योरप की चित्रकला और मूर्ति-निर्माण-कला से नग्न-प्रदर्शन कमी भी पृथक् नहीं रहा है। लिडनर्ड डा बिंसी के समान महान् चित्रकार––कदाचित् जाग्रति-काल के सर्वश्रेष्ठ चित्रकार के सम्बन्ध में भी कहा जाता है कि उसने अपने उल्लेखनीय चित्रों में से एक में विषय-भोग का गाढ़ालिङ्गन अङ्कित किया था। परन्तु वर्तमान काल में व्यापारिक उद्देश्य को सामने रखकर जिस अश्लीलता का प्रकाशन किया जा रहा है उसे कला की दृष्टि से भी कदापि उचित नहीं कहा जा सकता। ब्लाच ने इस अश्लील प्रकाशन का वर्णन करते हुए इस व्यवसाय के केन्द्रों का भी वर्णन किया है:––

"इन बड़े बड़े अश्लील ग्रन्थों[१] के साथ ही साथ निम्न कोटि का प्रकाशन भी हो रहा है। ये चित्र और लेख गन्दगी और अश्लीलता में सीमा पार कर जाते हैं। और अत्यन्त ही नीचे दर्जे के तथा कुरुचि-पूर्ण होते हैं। पोस्ट-


  1. इसके सम्बन्ध में हम आगे लिखेंगे।