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पश्चिम में कामोत्तेजना

उदार और स्वतंत्र विचार इस समस्या को हल करेंगे या कट्टर नियमानुकूल दिवार? जिनकी कि आज नियम-पालन करने की अपेक्षा नियम भङ्ग करने में ही प्रतिष्ठा है––यह प्रश्न स्वयं ही अभी एक समस्या बना हुआ है।

हाँ, दक्ष निरीक्षकों को जो बात निश्चयरूप से दिखाई देती है वह यह है कि आधुनिक पाश्चात्य जीवन में कामेात्तेजना स्वास्थ्य की सीमा को उल्लंघन कर गई है। ब्लाच कहते हैं[१]

"एक महान् चिकित्सक का कथन है 'हम तीन बार––बहुत अधिक भोजन करते हैं।' इस कथन को और स्पष्ट करने के लिए मैं इसमें इतना और जोड़ देता हूँ कि हम केवल तीन बार-बहुत अधिक भोजन ही नहीं करते हैं बदन हम समस्त दूसरे इन्द्रिय-सुखों को भी बहुत अधिक मात्रा में चाहते हैं इसलिए हम प्रेम भी तीन बार––बहुत अधिक करते हैं या यह कि हम प्रायः सम्भोग करने में लगे रहते हैं।"

इस 'आवश्यकता से अधिक कामी जीवन का हमारे मनोभावों पर बड़ा बुरा प्रभाव पड़ता है। 'हमारे एक अत्यन्त बुद्धिमान् मनोविज्ञान नेत्ता' विली हेलपैक की निम्नलिखित सम्मति को स्वीकार करके ब्लाच ने अपनी पुस्तक में उद्धत किया है:––

"हमारे नवयुवकों की एक बड़ी संख्या के लिए स्त्री-प्रसंग वैसी ही साधारण बात है जैसे ताश खेलना, शाम को क्लब में जाना, और शराब पीना और उन अल्प-संख्यक जनों में भी जो अन्य प्रकार से रहते हैं अधिकांश ऐसे होते हैं जो केवल भयवश या शक्ति की कमी के कारण ऐसा करते हैं।"

एक लोकप्रिय अँगरेज़ लेखक––'एक गर्द साफ करनेवाले सज्जन' ने 'दी ग्लास आफ फैशन'[२] नामक अपनी एक लोकप्रिय पुस्तक में यही विचार व्यक्त किये हैं :-

"मैं इस वायुमण्डल को जो प्रायः समस्त समाज को आच्छादित किये हुए है मानव-जाति के उच्च जीवन के लिए धातक समझता हूँ। इसने प्रेम को


  1. उसी पुस्तक से।
  2. लन्दन मिल्स एण्ड बून १३१-१३२।