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विषय-प्रवेश


पहले हिन्दुस्तान में वे बड़े ओहदों पर रह चुके थे। एक सज्जन शाही अधिकारपत्र द्वारा स्थापित किये हुए एक हाई कोर्ट के जज और दूसरे बम्बई सरकार के शिक्षा मन्त्री रह चुके थे। दूसरे भारतीयों में से दो भारत सरकार की कार्यकारिणी सभा के और एक बम्बई सरकार की कार्यकारिणी सभा के सदस्य रह चुके थे। उनमें से एक सज्जन इस समय लन्दन में भारत के प्रधान कमिश्नर के उच्च पद पर हैं। इसी तरह और भी। मदर इंडिया पर उनकी सम्मति का कम मूल्य नहीं है। साधारण उत्तेजकों या बिना किसी पद के मनुष्यों की भांति उन पर झाडू नहीं चलाया जा सकता। यह कहकर कि उनकी सम्मति असत्य और मानने योग्य नहीं है भारत सरकार की विशेष चापलूसी नहीं की जा सकती।

अब मैं एक ऐसे व्यक्ति की राय देना चाहता हूँ जिसकी तुलना अमरीका के एक बड़े ईसाई नेता ने ईसामसीह के साथ की है और जिसे पश्चिम के कितने ही विद्वानों ने इस युग का सबसे महान् पुरुष माना है। मेरा तात्पर्य महात्मा गान्धी से है। अपने साप्ताहिक पत्र "यंग इंडिया" में 'मोरी निरीक्षक का विवरण' शीर्षक देकर महात्मा गान्धी ने अपने हस्ताक्षर के साथ एक लेख प्रकाशित किया था। उसमें उन्होंने इस पुस्तक के सम्बन्ध में निम्न-लिखित राय दी थी :—

पुस्तक बड़ी चतुरता और ज़ोर के साथ लिखी गई है। सावधानी के साथ चुने हुए उद्धरणों से जान पड़ता है कि यह सच्ची किताब होगी। परन्तु मेरे चित्त में इसने जो भाव पैदा किया वह यह है कि यह एक ऐसे मोरी निरीक्षक का विवरण है जो केवल देश के नाबदानों को खोलने और उनकी जाँच करके विवरण तयार करने या खुले नाबदानों से जो दुर्गन्धि निकलती है उसका ललित भाषा में वर्णन करने के उद्देश्य से ही भेजा गया हो। यदि मिस मेयो यह स्वीकार कर लेती कि वह भारतवर्ष के केवल नाबदानों को खोलने और उनकी जाँच करने आई थी तो कदाचित् उसकी इस रचना की निन्दा न की जाती।

मैं जानता हूँ कि कोई भी, जिसे भारतवर्ष के बारे में कुछ जानकारी है, इस दुखी देश के निवासियों के जीवन और विचार के विरुद्ध ऐसे भयानक अपराधों को स्वीकार नहीं कर सकता। पुस्तक बिना सन्देह झूठी है।