पृष्ठ:दुखी भारत.pdf/२७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५३
पश्चिम में कामोत्तेजना

है। मिस मेयो ने भारतवासियों में इन्द्रिय रोगों की बहुलता की बात कही है। इस बात का समर्थन करने के लिए न तो उसके पास अङ्क हैं, न चिकित्सकों के प्रमाण हैं और न उसने कोई अनुसन्धान ही किया है। वह केवल अस्पताल की कुछ घटनाओं का वर्णन करती है; पाठकों को यह भी नहीं बतलाती कि इन घटनाओं का ज्ञान उसे कहीं से और कैसे हुआ; और उन्हीं पर अपनी सम्मति प्रकट करने लगती। इस बात के मानन का यथेष्ट कारण है कि भारतवर्ष में इन्द्रिय-रोगों का विस्तार इतना अधिक नहीं है जितना कि पाश्चात्य देशों में। इतिहास इस बात का प्रमाण दे सकता है कि इस सम्बन्ध में योरप से ही 'संसार को खतरा' है। एशिया के अन्य देशों के साथ भारतवर्ष को गर्मी का रोग ४ या ५ शताब्दी पूर्व पुर्तगालवालों से और योरप की अन्य जातियों से मिला था। ठीक उसी भांति जैसे कि अफ्रीका के मूल निवासियों को आज यह उनमें सभ्यता का प्रचार करनेवाले गोरों से मिल रहा है। भारतवासी गर्मी की बीमारी को 'फिरङ्गी रोग' कहते हैं, क्योंकि यह उन्हें 'फिरङ्ग' अर्थात् योरपनिवासियों से मिला था। डाक्टर इवान ब्लाच ने अपनी गर्मी रोग के इतिहास नामक पुस्तक में इस विषय का पूर्ण रूप से वर्णन किया है और निश्चय के साथ यह दिखलाया है कि ५५ वीं शताब्दी के अन्त तक सभ्य संसार में यह रोग अज्ञात था। इस प्रसिद्ध प्रामाणिक लेखक ने निम्नलिखित शब्दों में इस इतिहास का संक्षिप्त वर्णन कर दिया है[१]:––

"गर्नी का रोग पहले पहल १४९३ और १४९४ में कोलम्बस के जहाजी साथीयों द्वारा स्पेन में लाया गया था। वे लोग इस रोग को मध्य अमरीका से और विशेषकर 'इती' नामक टापू से ले आये थे! अष्टम चार्लस की सेना-द्वारा यह स्पेन से इटली पहुँचा। वहीं इसने महामारी का रूप धारण कर लिया। और इस सेना के तोड़ दिलो जाने के पश्चात् सैनिकों द्वारा यह रोग योरप के दूसरे देशों में भी पहुँच गया। पुर्तगालवाले इसे दूर के पूर्वी देशों––भारतवर्ष, चीन और जपान––में भी ले गये।"

इस रोग के इतिहासकार बतलाते हैं कि १६ वीं शताब्दी में यह योरप में महामारी के समान फैला हुआ था। और सम्पन्न लोगों में विशेषरूप से था।


  1. उसी पुस्तक से, पृष्ठ ३५५।