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दुखी भारत

डाक्टर ब्लाच का कथन है कि अब योरप में गर्मी रोग का प्रकोप पहले की अपेक्षा कुछ कम हो गया है। क्योंकि योरपवासियों के पूर्वजों में यह रोग इतना अधिक फैला हुआ था कि अब वर्तमान सन्तति के रक्त में इसका प्रभाव कम करने की बहुत कुछ शक्ति पैदा हो गई है। ब्लाच[१]कहते हैं––'हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए गर्मी रोग से बड़ा घोर युद्ध किया था। स्वयं इस रोग से पीड़ित होकर उन्होंने हमें इसके ज़ोर से बचा दिया। ब्लाच ने अलबर्ट रीम्बेर का निम्नलिखित वाक्य उद्धृत किया है:––

"इस समय योरप में जो लोग बसे हैं उनमें से प्रत्येक के गत ४०० वर्षों में ४,००० पूर्वज रह चुके हैं। इसमें से एक बड़ी संख्या को गर्मी-रोग से अवश्य युद्ध करना पड़ा होगा। यह बात सुनने में चाहे जितनी कडुवी प्रतीत हो पर है सत्य।"

भिन्न भिन्न पाश्चात्य देशों और नगरों में इन्द्रिय-रोगों के सम्बन्ध में जो अनुसन्धान हो रहे हैं उनसे पश्चिम की अवस्था कुछ अच्छी नहीं जान पड़ती। पाश्चात्य राज्य इस रोग के विरुद्ध आन्दोलन और उससे बचने के उपार्यों का प्रचार करने में अत्यन्त धन व्यय कर रहे हैं। इस दिशा में भारत सरकार ने अभी बहुत कम उद्योग किया है। फिर भी यह तो प्रत्यक्ष ही है कि इस संबन्ध में भारत की अपेक्षा पश्चिम की कहीं अधिक बुरी आवस्था है।

ब्लाच ने १९०० ई॰ में प्रूसिया में किये गये एक अनुसन्धान का फल प्रकाशित किया है और क्रिचनर की इस सम्मति को उद्धृत किया है कि 'प्रूसिया में एक से दूसरे को हो जानेवाले इन्द्रिय-रोगों से प्रतिदिन १,००,००० व्यक्ति पीड़ित रहते हैं।' ब्लासेक्का की जाँच के आधार पर ब्लाच कहते हैं कि 'जान पड़ता है कि जो लोग ३० वर्ष से ऊपर की आयु में प्रथम बार विवाह करते हैं उनमें से औसत दर्जे पर प्रत्येक को दो बार सुज़ाक हो चुका

रहता है और प्रत्येक चार या पाँच में एक को गर्मी का रोग हो चुका रहता है।'[२]


  1. पृष्ठ ३८४
  2. उसी पुस्तक से, पृष्ठ ३९४-५