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पश्चिम में कामोत्तेजना

ब्लाच के प्रामाणिक ग्रन्थ से नीचे एक और पैराग्राफ़ उद्धत किया जाता है। यह उन्होंने कोपेनहेगेन के अङ्कों के आधार पर लिखा था[१]:––

"२० वर्ष से लेकर ३० वर्ष तक की आयु के समस्त युवकों में प्रतिवर्ष १०० में १६ से २० तक इन्द्रिय-रोगों से ग्रसित रहते हैं। ८ में १ सुज़ाक से और ५५ में १ गर्मी से पीड़ित रहते हैं। गत दस वर्षों में प्रतिशत ११९ मनुष्य इन्द्रिय-रोगों से पीड़ित पाये गये। अर्थात् प्रत्येक मनुष्य को एक बार से अधिक इन रोगों का शिकार होना पड़ा।"

इतने पर भी डेनमार्क की दशा योरप के दूसरे देशों की अपेक्षा कहीं अच्छी है। ब्लाच कहते हैं[२]:––

"डेनमार्क, जर्मनी, जर्मन-आस्ट्रिया और स्वीज़लेंड में परिस्थिति अत्यन्त-अनुकूल प्रतीत होती है। इसके पश्चात् बेलजियम, फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल तथा उत्तर और मध्य इटली का नम्बर आता है। दक्खिन इटली, यूनान, टर्की रूस, और इँगलैंड की अवस्था अत्यन्त शोचनीय है।"

हेवलाक एलिस की पुस्तक में हमें निम्नलिखत बात पढ़ने को मिलती है[३]:––

"इस प्रश्न पर विचार करने के लिए अमरीका में न्यूयार्क के चिकित्सा-संघ ने एक अनुसन्धान समिति बनाई। इस समिति ने पूर्ण रूप से अनुसन्धान करने के पश्चात् अपना इस आशय का फल प्रकाशित किया कि न्यूयार्क नगर में प्रतिवर्ष कम से कम २,५०,००० व्यक्ति इन्द्रिय-रोगों के शिकार होते हैं।––और न्यूयार्क के एक प्रमुख चर्मरोग चिकित्सक ने कहा कि उच्च घराने के लोगों में कम से कम एक तिहाई ऐसे हैं जिनके बेटों को गर्मी का रोग है। मैं अन्तरङ्ग रूप से यह बात जानता हूँ। एक प्रामाणिक लेखक के अनुमान के अनुसार जर्मनी में प्रतिवर्ष कम से कम ८,००,००० व्यक्ति इन्द्रिय-रोगों के शिकार होते हैं। बड़े विश्वविद्यालयों में २५ प्रतिशत विद्यार्थी इन रोगों से ग्रस्त पाये जाते हैं। यह लिखने की आवश्यकता नहीं कि विद्यार्थियों में इन्द्रिय-


  1. उसी पुस्तक से, पृष्ठ ३९३।
  2. उसी पुस्तक से, पृष्ठ ३९२।
  3. 'विषय-वासना और समाज' नामक पुस्तक, पृष्ठ ३२७।