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दुखी भारत

रोग विशेषरूप से पाये जाते हैं। फ्रांस और ग्रूसिया के युद्ध में जितने मनुष्य थे उनकी एक तिहाई संख्या इन्द्रिय-रोगों के कारण प्रतिवर्ष जर्मन-सेना से अयोग्य ठहराकर पृथक् कर दी जाती है। परन्तु इतने पर भी यदि जर्मन-सेना की तुलना ब्रिटिश-सेना से की जाय तो वह इन्द्रिय-रोगों से कहीं अधिक स्वतन्त्र प्रतीत होगी। ब्रिटिश सेना में गर्मी का रोग जितना पाया जाता है उतना किसी भी अन्य योरपीयन सेना में नहीं पाया जाता।"

इस वक्तव्य के साथ एलिस ने निम्नलिखित पाद-टिप्पणी भी लगा दी है:––

"भारतवर्ष में भी जहाँ तक अँगरेज़ी सेना का सम्बन्ध है (एच॰ सी॰ फ्रेंच-लिखित सेना में गर्मी का रोग, १९०७) इन्द्रिय-रोग देशी सिपाहियों की अपेक्षा गोरे सिपाहियों में दसगुना अधिक पाया जाता है। राष्ट्रीय सेनाओं के बाहर अस्पताल में भर्ती हुए रोगी सिपाहियों की संख्या और इस रोग से मृत्यु-संख्या देखने पर पता चलता है कि इन्द्रिय-रोगों में अमरीका सबसे प्रधान ही नहीं है––बल्कि सब देशों से बहुत आगे भी बढ़ गया है। अमरीका के पश्चात् ग्रेटब्रिटेन का नम्बर है। तब फ्रांस और उसके पश्चात् आस्ट्रियाहङ्गरी, रूस और जर्मनी आदि हैं।........."

१९१४ ई॰ में इन्द्रिय-रोगों के सम्बन्ध ने शाही जाँच कमीशन के सामने गवाही देते हुए डाक्टर डगलस ह्वाइट ने कहा था कि मेरे

आनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष अकेले लन्दन में १,२२,५०० नवीन व्यक्तियों को इन्द्रिय-रोग हो जाता है, और संयुक्त राज्य अमरीका में ८,००,००० नवीन व्यक्तियों को। इनमें १,१४,००० व्यक्तियों को गर्मी का रोग होगा। इन अङ्कों के आधार पर उन्होंने यह अनुमान किया है कि संयुक्त राज्य अमरीका में ३,००,००० गर्मी के रोगी अवश्य होंगे।[१] यदि इस अङ्क में उन लोगों की भी एक बहुत बड़ी संख्या जोड़ दीजिए जिन्हें अपने जीवन के किसी न किसी समय में सुज़ाक हो चुका हो तो आपको ज्ञात होगा कि मिस क्रिस्टेबुल पैंकर्स्ट का यह अनुमान कि समस्त जन-संख्या का ७५ प्रतिशत भाग किसी न किसी समय में इन्द्रिय-रोगों का शिकार रह चुका है, अतिशयोक्ति-पूर्ण नहीं है।


  1. दी मास्टर प्रोब्लेम।