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दुखी भारत


इसमें वर्णन की गई बातें सचही क्यों न हों। यदि मैं लन्दन के नाबदानों में जो दुर्गन्धि भरी है उसको खोलू और सावधानी के साथ उसका ठीक ठीक वर्णन करके कहूँ—'देखिए यह लन्दन है', तो मेरी बातों के विरोध करने का किसी को दावा नहीं हो सकता। पर मेरा निर्णय सत्य का उपहास करनेवाला समझा जायगा और ग़लत ठहराया जायगा। यही होना भी चाहिए। मिस मेयो की पुस्तक इससे ज्यादा अच्छी चीज़ नहीं है। इससे भिन्न भी नहीं। लेखिका का कहना है कि हिन्दुस्तान के बारे में उसने जो साहित्य पढ़ा उससे उसे सन्तोष नहीं हुआ। इसलिए वह हिन्दुस्तान में 'वह बातें देखने के लिए आई जो बिना किसी के द्वारा नियुक्त किया हुआ, बिना किसी आर्थिक सहायता के एक असंबद्ध स्वयं सेवक मानव जीवन की दैनिक क्रियाओं में देख सकता है।'

पुस्तक को ख़ूब ग़ौर से पढ़ने के बाद मुझे दुःख के साथ कहना पड़ता है कि मैं लेखिका के इस दावे को नहीं मान सकता। सम्भव है कि उसे कोई आर्थिक सहायता प्राप्त न हुई हो। पर ऐसा कोई पृष्ठ नहीं जिसमें वह अपने अनियुक्त और असम्बद्ध होने का प्रमाण दे सके। हम भारतवर्ष में सरकार की, संरक्षता-प्राप्त ('संरक्षता-प्राप्त' आर्थिक सहायता प्राप्त' का अच्छा पर्याय-वाची माना जाता है) प्रकाशनों के आदी हो गये हैं। हमें अँगरेज़ों के शासन-काल के पहले ही से यह समझने का अभ्यास हो गया है कि शासनकला (जिसका पूर्ण विकास ब्रिटिश लोगों ने किया) में सामयिक सरकार पर किये गये संदेहों को छिपाने और उसका गुणानुवाद फैलाने के लिए प्रसिद्ध, सम्माननीय और विद्वान् पुरुषों से गुप्त सेवाएँ लेना भी सम्मिलित है। ये सेवाएँ लेख आदि के रूप में इस तरह ली जाती हैं कि जान पड़ता है मानों सरकार को यह प्रमाणपत्र ऐसी जगह से मिला है जिसका उसके साथ कोई सम्बन्ध न हो। मुझे आशा है कि मिस मेयो बुरा न मानेंगी यदि उन पर भी ऐसे सन्देह की छाया पड़ती हो।.........

मदर इंडिया पुस्तक झूठी ही नहीं, दोहरी झूठी है। प्रथम तो इस कारण कि वह सम्पूर्ण राष्ट्र को, या उसी के शब्दों में 'भारत की सब जातियों' को (वह हमें एक राष्ट्र नहीं समझ सकती) बिना किसी अपवाद के स्वास्थ्य, आचरण और धर्म में गिरा हुआ बतलाती है। दूसरे इस कारण कि वह ब्रिटिश सरकार में ऐसी खूबियों के होने का दावा करती है जो सिद्ध नहीं की जा सकतीं और जिनके कारण सरकार को सम्मानित होते देख कर कितने ही ईमानदार ब्रिटिश अफ़सर बिना लज्जा के सिर नीचा किये न रहेंगे।......

मिस मेयो एक प्रतिज्ञा-बद्ध भारत की विरोधिनी और ब्रिटिश की पक्षपातिनी है। भारतवासियों में वह कुछ भी अच्छाई और ब्रिटिश तथा उनके शासन में कुछ भी बुराई देखने से इनकार करती है।......