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पश्चिम में कामोत्तेजना

है। उसी के साथ वह सवार होकर निकलती है, नाचती है और पहाड़ियों में सैर करने जाती है। क्लब में निरन्तर वही युवक उसकी सेवा में रहता है। वास्तव में वह लार्ड बायरन द्वारा प्रशंसित 'प्रेमी नौकर' का ही प्रायः सब काम करता है। इसमें सन्देह नहीं कि ये चञ्चल मित्रताएँ धनी-भूत होने पर विभिन्न रूप धारण कर लेती हैं। कुछ वास्तविक मित्रता में और कुछ गम्भीर प्रेम में परिणत हो जाती हैं। पर उनमें से अधिकांश प्रेम के खेल, नष्टप्राय यौवन-गुमान के सन्तोष, और जो स्त्रियां यह सुनकर भयभीत हो उठती है कि वे इन सब बातों में अनुरक्त और दृढ़ पत्नियां नहीं हैं उनके आवेश-पूर्ण सैल-सपाटों के अतिरिक्त और कुछ नहीं होती।....."

आगे ऐसी ही बातों का सावेस्तर वर्णन किया गया है। परन्तु उन्हें हम यहां उद्धृत नहीं करना चाहते। भारतवर्ष के ब्रिटिश-समाज का अपमान करने की हमें तनिक भी इच्छा नहीं है। परन्तु यदि वे मिस मेयो के सुर में सुर मिलाना आरम्भ कर दें तो उन्हें यह स्मरण दिलाया जा सकता है कि मिस मेयो भारतवासियों के सम्बन्ध में जितना जान सकती है, बारबारा विङ्गफील्ड स्ट्रैडफोर्ड से अपने इन चचेरे भाइयों के सम्बन्ध में उससे कहीं अधिक अच्छा ज्ञान रखने की आशा की जा सकती है।

मिस मेयो अपने विषय-भोग-सम्बन्धी गन्दे वर्णनों का पक्ष समर्थन करने के लिए एबे डुबोइस के सन्देहजनक प्रमाणों को उपस्थित करना भी अनावश्यक समझती है। हम देख चुके हैं कि एबे भी उसके इस कथन का समर्थन नहीं करता कि भारतीय स्त्रियां भारत के पुरुष की पहुँच में जाने का साहस नहीं कर सकती। इस संबन्ध में उसके पास प्रमाण-स्वरूप केवल मार्शल ला के समय की एक सूचना-पत्र की कथा है जिसकी कि बहुत कुछ निन्दा हो चुकी है। उसने यह सूचना-पत्र मार्शल ला और अशान्ति के संबन्ध में हन्टर कमेटी द्वारा की गई जांच-पड़ताल के विवरण में से खोद निकाला है। कांग्रेस की जांच-समिति ने जिसके सदस्यों में महात्मा गांधी और स्वर्गीय सी॰ आर॰ दास भी सम्मिलित थे, इस कथा का अनुसन्धान किया था और अपने विवरण में इसे पूर्ण रूप से असत्य सिद्ध कर दिया था। इस बात का मिस मेयो कहीं उल्लेख तक नहीं करती। सच तो यह है कि इस संबन्ध में