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दुखी भारत

भारतीय आदर्श विशेष उच्च है। डाक्टर कार्नेलियस ने अपने करेन्ट हिस्ट्री (चालू इतिहास) के लेख में—इसके कुछ अंश उपसंहार में मिलेंगे—मिस मेयो के इस आक्षेप पर टिप्पणी करते हैं कि 'जिन क़िलों और छावनियों में ब्रिटिश सिपाही रहते हैं उन्हीं के आस पास स्त्रियां सुरक्षित नहीं रहतीं।' मिस विङ्गफील्ड स्ट्रैटफोर्ड ने अपनी 'भारत और अँगरेज़' नामक पुस्तक में भारतीय सदाचार के इस अङ्ग पर लिखा है[१]:—

"यह कभी सिद्ध नहीं किया गया कि बलवे के दिनों में एक अँगरेज़ महिला का भी सतीत्व नष्ट किया गया हो। कानपूर में भी सिपाहियों ने स्त्री और बच्चों की हत्या करना दृढ़ता के साथ अस्वीकार कर दिया था और इस काम के लिए बाज़ार से मुसलमान क़साई बुलवाये गये थे। यह बात सरकारी क़ाग़जों में दर्ज है कि १८२४ ईसवी में बारकपुर के बलवे में बलवे के नेताओं ने अपने आप यह पवित्र प्रतिज्ञा की थी कि चाहे जो हो वे योरपियन स्त्रियों और बच्चों को कोई कष्ट न पहुँचावेंगे और न उनकी लज्जा अपहरण करेंगे। बलवे के दिनों तक एक अँगरेज़ अफ़सर अपने बच्चों को सिपाहियों के घरों में जाने देता था और उनके साथ खेलने देता था। और जब तक बन्दूक़ों की आवाज़ साफ़ साफ़ नहीं सुनाई पड़ने लगी तब तक स्त्रियों को अपना निवास छोड़ने का कष्ट नहीं उठाना पड़ा था। सर एण्ड्रूफ्रेसर कहते हैं—'वे (भारतवासी) भली स्त्रियों के प्रति, चाहे वे योरपियन हो चाहे भारतीय, वीरतापूर्ण सम्मान प्रकट करते हैं और उनकी प्रशंसा करते हैं।"




  1. उसी पुस्तक से, पृष्ठ १२६।