इस बात के विश्वास करने का यथेष्ट कारण है कि 'जो अङ्क पुलिस को ज्ञात है' वे वास्तविक अङ्कों से बहुत कम हैं। कतिपय स्वाभाविक कठिनाइयों के कारण यहां ऐसे अपराधों की संख्या विशेषरूप से अधिक है जिनका पुलिस को पता नहीं चला और जिनके लिए किसी को दण्ड नहीं दिया गया। विवरण के १६वें पैराग्राफ में हम पढ़ते हैं:—
"स्वजनों के साथ व्यभिचार—कुटुम्ब के भीतर अपराध किये जाने पर कुटुम्बी जनों के विशेष पारस्परिक सम्बन्ध के कारण पुलिस को उसका पता लगाने में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। माता बहन या बेटी के साथ व्यभिचार किये जाने पर यदि अपराधी पकड़ा जाय तो कुटुम्ब उस पिता या भाई की सहायता से कई वर्ष तक वञ्चित रह सकता है तथा कुटुम्ब को उसके कारागारवास के समय तक दरिद्रों के लिए कोष से सहायता मिलने के अतिरिक्त और कहीं से आय नहीं हो सकती। इसलिए इस बात को पुलिस के कर्मचारी तथा अन्य अनुभवी सज्जन तुरन्त स्वीकार कर लेते हैं कि कुटुम्ब के भीतर व्यभिचार की जितनी शिकायतें पहुँचती हैं वास्तव में उनकी संख्या उससे कहीं अधिक होती है।"
विवरण के दशम भाग में कमेटी लिखती है कि छोटे बच्चों के साथ किये गये व्यभिचार के अपराधों का पता लगाने के लिए निम्नलिखित कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है:—
"पुलिस को जितने अपराधों की जानकारी रहती है वह उसकी अपेक्षा इतने कम लोगों पर अभियोग लगाती है कि देखकर चकित रह जाना पड़ता है। यह अनुमान किया जा सकता है कि इन अपराधों की सूचना मिलने पर पुलिस यथासम्भव शीघ्र कार्रवाई नहीं करती परन्तु हमें सन्तोष है कि इस अन्तर से यह बात सिद्ध नहीं होती।
"प्रमाण न मिलने की घोर कठिनाई, अपराध का समर्थन न होना, और अदालत में उपस्थित किये जाने से पूर्व वादी की जांच-पड़ताल करना आदि ऐसी बातें हैं जिनके कारण भी पुलिस अपराध को जानती रहती है पर कोई कार्रवाई नहीं कर सकती। हमें ऐसी घटनायें बतलाई गई हैं जिनमें केवल इन्हीं कारणों से कोई कार्रवाई नहीं की गई; यद्यपि अपराध करनेवाला पुलिस को ज्ञात था।