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दुखी भारत

"हमारी समझ में अपराधियों की एक बड़ी संख्या के छोड़ दिये जाने से कारण हैं उदाहरण के लिए बच्चों की साक्षी पर दबाव पड़ना और उनका कोई समर्थक न मिलना।"

और एक कठिनाई यह भी है कि 'कचहरियां जब तक कोई समर्थन करनेवाला न हो शिशुओं की बिना शपथ ली गई साक्षी पर कार्रवाई नहीं कर सकतीं।' कचहरियों ने प्रायः '१० वर्ष या ११ वर्ष के शिशु की भी शपथ पर ध्यान देना अस्वीकार कर दिया है।' समर्थन के सम्बन्ध में जो कठिनाइयाँ उपस्थित होती हैं वे विवरण के ६८ वें अंश में दर्ज हैं।

"अपराध का समर्थन प्राप्त करना प्रायः असम्भव होता है। क्योंकि जो लोग अपराध करते हैं वे इस बात की बड़ी सावधानी रखते हैं कि उनके अपराध ऐसी परिस्थितियों में न हों जो उन्हें पकड़वा दें। इसलिए होता यह है कि किसी कम आयु के शिशु पर घोर अत्याचार किया जाता है पर अदालत को समर्थन के अभाव के कारण, जानते हुए भी अपराधी को छोड़ देना पड़ता है। हमारे देखने में ऐसे बहुत से उदाहरण आये हैं और हमारे पास इस बात का प्रमाण है कि अदालतों को शिशु का शपथ-विहीन वक्तव्य ध्यान से सुनकर इस निश्चय पर पहुँचने पर भी कि वह सत्य कह रहा है, मुक़दमा खारिज कर देना पड़ा है। नीर एक मामले का उदाहरण दिया जाता है। इसमें एक व्यक्ति व्यभिचार के लिए छोटे शिशुयों पर आक्रमण करने के अपराध में ६ बार अदालत में लाया गया था:––

२७ मार्च १९२२––पाँच वर्ष की बालिका पर व्यभिचार के लिए आक्रमण––मुकदमा उठा लिया गया था।

२७ मार्च १९२३––सात वर्ष की बालिका पर व्यभिचार के लिए आक्रमण––अपराधी छोड़ दिया गया।

२७ जून १९२३––तीन वर्ष की बालिका पर व्यभिचार के लिए आक्रमण––मुकदमा खारिज कर दिया गया।

१९ नवम्बर १९२३––साढ़े तीन वर्ष की बालिका पर व्यभिचार के लिए आक्रमण––अपराधी छोड़ दिया गया।

२४ जून सन् १९२४––चार वर्ष की बालिका पर व्यभिचार के लिए आक्रमण––बारह महीने का कठिन कारागार दिया गया।