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दुखी भारत

शिशुओं के लिए खुले अन्य गृहों की संख्या १०१ है (गरीबों के कानून के अनुसार बने गृह, अस्पताल और दूसरे मातृ-भवन भी प्रायः सबके सब ऐसी स्त्रियों की जो सहायता करते हैं वह अलग ही है) तब यह स्पष्ट है कि यदि प्रत्येक अपराध की सूचना पुलिस को मिलती तो १३ वर्ष से १६ वर्ष की आयु की बालिकाओं के सम्भोग-सम्बन्धी ज्ञान के सरकारी तौर पर दर्ज किये गये अङ्क २०० से बहुत ऊपर हो जाते। ऐसे गृहों के सञ्चालक लोग इन अपराधों की सूचना पुलिस को देने में हिचकिचाते हैं। इसका कारण या तो बालिकाओं का आ-स्वास्थ्य होता है या वे अपराधी के प्रायः न पकड़े जा सकने के कारण हतोत्साह हो जाते हैं।

एक गृह ने १६ वर्ष से कम आयु की बालिकाओं के साथ व्यभिचार होने की ५ सूचनाएँ पुलिस को दीं। दो में पुलिस केवल इतना ही कर सकी कि उसने गृह-सञ्चालकों को मुकदमा चलाने की राय दी। दो में अपराधी की गिरफ्तारी नहीं हो सकी। अन्तिम सूचना में अपराधी अस्सीज़ेज़ में पकड़ा गया। परन्तु अपील करने पर वह छोड़ दिया गया। दूसरे गृह में १६ वर्ष से कम आयु की ११ गर्भवती बालिकाएँ भर्ती की गई। गृह ने इनमें से तीन बालिकाओं की ओर से अदालत में मुकदमा चलाया। परन्तु किसी में भी अपराधी पकड़े नहीं गये।

ऐसे अपराधों की वृद्धि के सम्बन्ध में यह कमेटी अपने अनुसन्धानों के अनुसार जिन परिणामों पर पहुँची है उनके विवरण के १८ वें भाग में इस प्रकार संक्षिप्त उल्लेख किया गया है:––

"अल्पवयस्कों के साथ किये गये भ्रष्टाचारों के सम्बन्ध में हमने सरकारी और स्थानीय अङ्कों पर तथा साधारण साक्षियों पर विचार किया है और इसके अनुसार हम निम्नलिखित परिणामों पर पहुँचे हैं कि:––

१––जितने अपराधों की सूचना पुलिस को मिलती है उनकी अपेक्षा कहीं अधिक विषय-भोग-सम्बन्धी अत्याचार अल्प-वयस्क पर किये जाते हैं।

हम आशा करते हैं कि इस जाँच का एक परिणाम यह होगा कि ऐसे जिन अपराधों का भेद खुलेगा उनकी सूचना जनता बड़ी तत्परता के साथ पुलिस को देगी।

२––ऐसे मुकदमों में उनकी संख्या अधिक है जिनमें अपराधी छोड़ दिये जाते हैं।