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दुखी भारत

लेना स्वीकार करें वहीं उसका चरित्र सुधारने के लिए उसे उनकी देख-रेख में रख दिया जाय या उसे इस शर्त पर ज़मानत लेकर छोड़ दिया जाय कि बह अपने सम्बन्धियों के साथ रहेगा।

"हमें ८० वर्ष से भी अधिक आयु के वृद्धों के सम्बन्ध में ज्ञात हुआ है कि अन्य सब प्रकार से प्रतिष्ठित व्यक्ति होते हुए भी उन्हें गन्दे अपराधों के कारण बार बार कारागार में बन्द होना पड़ा है। हमारा निश्चय है कि ऐसे व्यक्तियों के सुधार का सबसे अच्छा उपाय यह है कि उन्हें कारागार के अतिरिक्त किसी अन्य संस्था में कुछ समय तक के लिए रोक रक्खा जाय।"

'वृद्धों के अपराधों' के सम्बन्ध में जो अन्तिम पैराग्राफ दिया गया है उसमें इन अपराधों के 'केवल थोड़े से उदाहरण ऐसे हैं जो हमारे सामने उपस्थित किये गये हैं।' परन्तु ये उदाहरण उन मेयों और चर्चिलों का मुँह बन्द कर देने के लिए यथेष्ट हैं जो भारतवर्ष को अस्पताल और फौजदारी की अदालत से ली गई कुछ घटनाओं के कारण दात दिखाते हैं। विवरण कहता है:––

"जो हो, हमारे सामने जो बातें उपस्थित की गई उन पर गम्भीरता के साथ विचार करने के पश्चात् हम इस परिणाम पर पहुँचे हैं कि कतिपय दशानों में अपराधों को देखते हुए जो दण्ड दिये गये वे बहुत कम थे। इनमें से कई एक मुकदमे पार्लियामेंट में टीका-टिप्पणी के लिए रक्खे गये थे और इसमें सन्देह नहीं कि ये टीकायें उचित समझी गई। उदाहरण के लिए हमें एक ऐसे अभियोग के सम्बन्ध में लेागों ने बतलाया जिसमें पिता ने अपनी पुत्री पर दो बार व्यभिचार करने के लिए आक्रमण किया था। इनके लिए उस पिता को केवल एक मास की सज़ा दी गई थी। दूसरा अभियोग एक ऐसे पापी पर लगाया गया था जिसने दो छोटी बालिकाओं पर बलात्कार किया था। प्रत्येक के लिए उसे चार चार मास की सज़ाए दी गई थीं। पर दोनों सज़ायें साथ साथ चलती थीं। एक और भी अभियोग के सम्बन्ध में हमें मालूम हुआ है। एक मनुष्य व्यभिचार की चेष्टा करने के कारण किसी स्थान पर कुछ समय तक चरित्र सुधारने के लिए रख दिया गया था। इसी काल में वह दूसरा ऐसा ही गन्दा पाप-कार्य कर बैठा। इसके परिणाम-स्वरूप उसके चरित्र सुधारने का काल बढ़ा दिया गया । एक मुकदमे की सुनवाई अस्सी जेज़ में हुई थी। उसमें एक २४ वर्ष के युवक ने एक १४ वर्ष की बालिका के साथ सम्भोग किया था। युवक उस बालिका के घर में