पृष्ठ:दुखी भारत.pdf/२९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२७६
दुखी भारत

यह कमेटी आशा कर रही है कि शीघ्र ही इस अन्धविश्वास का जादू पूर्णरूप से नष्ट हो जायगा। हम भी हृदय से चाहते हैं कि 'ऐसा ही हो।'

****

मिस मेयो ने 'लिबर्टी' नामक पत्र में जो लेख प्रकाशित कराया है और जिसका हम विषय-प्रवेश में उल्लेख कर चुके हैं, उसमें भी वह अपने उन्हीं आक्षेपों पर जाती है जिनका कि इस अध्याय में उत्तर दिया गया है। महात्मा गाँधी ने मदर इंडिया को 'मोरी निरीक्षक का विवरण' ठीक ही कहा था। उनका तर्क था कि:––

"यदि मैं लन्दन के समस्त नाबदानों से जो दुर्गन्धि निकल रही है उसको खोलूँ और कहूँ––'देखो यह लन्दन है'! तो मेरी बातों का कोई खण्डन नहीं कर सकता। परन्तु मेरा निणय सत्य का उपहास समझा जायगा और उसकी निन्दा होगी। मिस मेयो की पुस्तक न इससे अच्छी है न इससे भिन्न।"

इसके उत्तर में मिस मेयो न्यूयार्क के 'आउटलुक' नामक पत्र की 'सच्ची और यथेष्ट अमरीकन टिप्पणी' उद्धत करती है।' टिप्पणी यह है:––

"सम्भव है! परन्तु यह किसी ने कभी नहीं बतलाया कि लन्दन में लोग छोटी बालिकाओं को नाबदानों में कैद कर रखते हैं।"

इस प्रकार की कपटपूर्ण बातों में शिकागो और न्यूयार्क के ही लोग संसार में सबसे अधिक आनन्द लेते हैं! परन्तु कदाचित् संसार के इन पाप केन्द्रों की यही विशेषता है। इस अध्याय में हमने जो प्रामाणिक साक्षियाँ उपस्थित की हैं उनसे यह सिद्ध नहीं होता कि लन्दन के नाबदान बच्चों के लिए बड़े आनन्ददायक हैं। और अमरीका के नगरों के तो निश्चय ही कुछ अच्छे नहीं हैं। इस समय हमारे पास अमरीका का कोई ऐसा सरकारी विवरण नहीं है जैसा कि ब्रिटिश का, जिसका कि इस अध्याय में हम वर्णन कर चुके हैं। न्यूयार्क और शिकागो के दैनिक 'विश्व निन्दकों' को साक्षी के लिए उपस्थित करना अमरीका के साथ न्याय न होगा। परन्तु उसी सिलसिले में हम