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हमारे परिचित विश्व-निन्दक वृन्द

इसमें सन्देह नहीं कि अमरीका के सम्पादकों में सभी ऐसे नहीं हैं। कुछ इस नीति के अपवाद भी हैं। परन्तु यह बात बड़े महत्त्व की है कि अमरीका के बड़े बड़े लेखकों में कुप्रथाओं के विरोध करनेवाले भी कम नहीं हैं। एच॰ एल॰ मेङ्कन, उपटन सिंक्लेयर, जैक लन्दन, सिंक्लेचर लेबिस आदि ऐसे ही लेखक हैं। सर्वोत्कृष्ट-अर्थात् अमरीका के अत्यन्त सच्चे और स्वतंत्र समाचार-पत्र––दी नेशन, न्यूरिपब्लिक, अमरीकन मरकरी, न्यू मासेस आदि––समाचार-पत्र भी इसी प्रकार कुप्रथाओं के घोर विरोधी हैं, परन्तु मदर इंडिया पर विचार करते समय हमें इन उत्तम अपवादों पर विचार नहीं करना है।

सिंक्लेयर के एक अध्याय का शीर्षक है––'निन्दा का दफ्तर'। और अमरीका की सम्पादन कला निसन्देह परनिन्दामय है। अमरीका के कुछ नगर संसार में प्रमुख पाप-केन्द्रों के नाम से विख्यात हैं। पर इन सब बातों के होते हुए भी हुए भी अमरीका का यह निन्दा का दफ्तर भली भांति जानता है कि अमरीका में किसी मनुष्य की मानहानि करने का सबसे अधिक प्रभावोत्पादक मार्ग यही है कि उसके सम्बन्ध में एक निन्दाजनक विषय-भोग-सम्बन्धी कथा का प्रचार किया जाय। पवित्रता का ढोंग रचने वाला यह पाखण्डी समाज सदा आश्चर्य से चकित हो जाने के लिए उत्सुक रहता है। इसके अतिरिक्त यह कथा नमक मिर्च लगाकर चटपटी बना दी जाती है और मसालेदार चटपटी सामग्री की सदैव माँग रहती ही

उपटन सिंक्लेयर को इस निन्दा के दफ्तर के हाथों प्रायः कष्ट भोगना पड़ा है। एक बार तो इन विश्व-निन्दकों ने उसके जीवन को इतना दुखी बना दिया था कि उसे अमरीका छोड़ देना पड़ा और यह निश्चय करना पड़ा कि वहाँ वह फिर कभी लौटकर न जायगा। इसके अतिरिक्त उसे प्रायः इस बात का अनुभव हुआ था कि जब वह सम्पादन-कला की दुर्नीतियों के विरुद्ध कोई आन्दोलन करता था तो यह निन्दा का दफ्तर उसके विरुद्ध आन्दोलन करने लगता था। सिंक्लेयर ने समाजसुधारकों का एक संघ स्थापित किया तो इस निन्दा के ने इस संघ को 'सिंक्लेचर की प्रेम-लीला' कह कर पुकारना आरम्भ किया और उसके विरुद्ध सब प्रकार की निन्दाजनक बातें फैलाई गई। वह डेनवर के हड़तालियों की सहायता करने गया तो उसके विरुद्ध