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हमारे परिचित विश्व-निन्दक-वृन्द

की जाय तब भी वे मानवीय कपट के एक बड़े वर्णन के समान प्रतीत होती हैं।

इन कथाओं में सम्मान का पद उस मृत-कथा को देना चाहिए जो अब एक नीरस और शुष्क फल से किसी दशा में अच्छी नहीं है। और जिसमें एक राजा पर यह कहने का कलङ्क लगाया गया है कि यदि ब्रिटिश भारतवर्ष को छोड़ देंगे तो तीन ही मास के भीतर न तो कहीं एक रुपया रह जायगा न कहीं कोई कुमारी कन्या।

कलकत्ता के कैपिटल नामक पत्र में लिखते हुए 'डिचर' (स्वर्गीय मिस्टर पैटलोवेट) ने कहा था:––

मालूम होता है मिस मेयो अपनी परिमिति शक्तियों को जानती है। क्योंकि अपनी सड़ी गोभी पकाने के लिए वह चण्डूखाने की गप्पों की ओर अधिक रुचि प्रकट करती है। परन्तु जिन पात्रों ने उससे ये गप्पे कही हैं उन्हीं ने उसकी टाँग भी बुरी तरह खींची है। उदाहरण के लिए निम्नलिखित बात पर ध्यान दीजिए:––

"यहाँ मैं एक ऐसे मनुष्य के मुँह से निकली बात लिख रही हूँ जिसकी सत्यता पर––मेरा विश्वास है––कभी किसी ने सन्देह नहीं किया। यह उस तूफानी समय की बात है जब १९२० ईसवी में नवीन सुधार-क़ानूनों ने खलबली मचा दी थी। लोग भ्रम में पड़ गये थे और ये खबरें उड़ने लगी थीं कि ब्रिटेन भारतवर्ष को छोड़ने जा रहा है। मुझे यह बात भारतवर्ष के सम्बन्ध में बहुत दिनों का अनुभव रखनेवाले एक अमरीकन से ज्ञात हुई थी। उन दिनों वह एक ऐसे प्रभावशाली देशी नरेश से मिलने गया था जो अत्यन्त आकर्षक, शिक्षित और शक्तिशाली था तथा जिसने अपने राज्य का सर्वोत्तम प्रबन्ध कर रक्खा था। राजा साहब का दीवान भी उस समय उपस्थित था और ये तीनों सज्जन चिर परिचित हो जाने के कारण बड़ी बेफिक्री से बातें कर रहे थे।

"दीवान ने कहा––'राजा साहब इस बात पर विश्वास नहीं करते कि ब्रिटेन भारतवर्ष को छोड़ने जा रहा। परन्तु तो भी इँग्लैंड के इस नवीन शासन-प्रबन्ध के अनुसार उन्हें (अँगरेज़ों को) गलत सलाह दी जा सकती है। इसलिए राजा साहब अपनी सेना सङ्गठित कर रहे हैं, हथियार इकट्ठा कर रहे हैं और सिक्के ढाल रहे हैं। यदि अँगरेज़ चले जायँगे तो उसके तीन ही मास पश्चात् समस्त बङ्गाल में ढूँढ़ने से न कहीं एक रुपया मिलेगा न कोई कुमारी कन्या।'