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हमारे परिचित विश्व-निन्दक-वृन्द

नहीं है। २९५ पृष्ठ पर वह कहती है––'सन् १९१९ की अशान्ति के समय में पञ्जाब में सरकार के विरुद्ध कार्य करनेवालों ने विदेशी स्त्रियों का अपमान करने के लिए विशेषरूप से आन्दोलन करना आरम्भ कर दिया था।' इस राक्षसी अपवाद का एक-मात्र आ‌धार केवल एक दीवाल पर चिपकाया गया विज्ञापन है। परन्तु उसका भी पंजाब के नेताओं ने जोर के साथ उसी समय प्रतिवाद किया था जब कि उन्हें उसका पता चला था। वह उत्तेजना फैलाने के लिए नियुक्त किसी व्यक्ति का कार्य समझा गया था। अपने विवरण में महात्मा गांधी ने भी इस पर टिप्पणी लिखी थी। मिस मेयो ने इन प्रतिवादों की ओर ज़रा भी ध्यान नहीं दिया।

अब एक दूसरी कथा पर ध्यान दीजिए। यह कथा उसकी पुस्तक के २७३-२७४ पृष्ठों पर इस प्रकार है:––

"इसी प्रकार भारतवर्ष की अवस्था से भली भाँति परिचित एक न्यूयार्क के पत्रकार ने १९२६-२७ ईसवी के शीतकाल में कतिपय भारतवासियों से, जो नगर में सार्वजनिक रूप में वार्तालाप कर रहे थे, पूछा––'भारतवर्ष की परिस्थिति के सम्बन्ध में आप लोग इस प्रकार घोर असत्य बातें क्यों कह रहे हैं? उनमें से एक ने शेष सबकी ओर से कहा––'क्योंकि आप अमरीकन लोग भारतवर्ष के सम्बन्ध में कुछ नहीं जानते और आपके ईसाई धर्म प्रचारक लोग जब और रुपया लेने के लिए वापस लौटते हैं तो अत्यन्त सत्य बातें कहते हैं और हमारे अभिमान पर आघात पहुँचाते हैं। इसलिए पलरा बराबर करने के लिए हमें असत्य भाषण करना पड़ता है।'

न्यूयार्क के पत्रकार का नाम नहीं दिया गया। और न उसका नाम दिया गया है जिसके मुँह से ये भद्दी बातें कहलाई गई हैं।

अब एक दूसरी कथा लीजिए। यह ३०५-३०९ पृष्ठों पर इस प्रकार दी गई है।

"एक दूसरी घटना में भारतवासियों की यह प्रवृत्ति और भी स्वाभाविक रूप में प्रकट हुई है। यह फरवरी सन् १९२६ ईसवी की बात है। एक बूढ़ा मुसलमान असिस्टेंट इंजीनियर एक ब्रिटिश अफ़सर के अधीन सिंचाई के विभाग में बहुत दिनों तक नौकरी कर चुका था। परिस्थिति ऐसी हुई कि उसने