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इक्कीसवाँ अध्याय
हिन्दुओं का स्वास्थ्य-शास्त्र

इसके अतिरिक्त मिस मेयो की पुस्तक पढ़ने से पाठकों के हृदय में यह असत्य धारणा भी उत्पन्न हो सकती है कि हिन्दू रोगी और गन्दे होते हैं। अच्छा, मिस मेयो के साथ न्याय करने के लिए यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि यदि कोई विदेशी भारतवर्ष के शहरों या गाँवों की यात्रा करता है तो सबसे प्रथम उसके दिल पर ऐसा ही प्रभाव पड़ता है। ऐसा यात्री यहाँ के निवासियों की आन्तरिक दशा के सम्बन्ध में कुछ नहीं जानता। और न वह भारतीय जन-संख्या के भिन्न भिन्न समुदायों या इस उप-महाद्वीप के भिन्न भिन्न भागों में ही कोई भेद लक्षित कर सकता है। एक बार जो धारणा बना ली जाती है वही बनी रहती है और कितना ही क्यों न समझाया जाय इसमें कमी नहीं आ सकती। परन्तु तो भी यह एक सत्य बात है कि संसार की कोई भी जाति (जापानियों के अतिरिक्त) स्वच्छता को भद्र पुरुष के लिए वैसा अनिवार्य गुण नहीं मानती जैसा हिन्दू मानते हैं। यह उनके धर्म का एक आवश्यक अङ्ग है। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर लोवेज़ डिकन्सन ने अपनी 'अपियरेन्स' नामक पुस्तक में लिखा है कि संसार में कदाचित् भारतवर्ष ही एक ऐसा देश है जहाँ धर्म एक सत्य और जीवित वस्तु माना जाता है जिसका कि कुछ मूल्य हो सकता है?

स्वच्छता कई प्रकार की होती है। शरीर की, पास-पड़ोस की और कपड़ों की। जिन प्रान्तों में जन-संख्या का अधिकांश भाग हिन्दुओं से बना होता है, उन उनमें शारीरिक स्वच्छता तो पूर्णरूप से पाई जाती है, पर अन्य प्रकार की स्वच्छता भी ऐसी होती है कि उसकी निन्दा नहीं की जा सकती। दूसरे प्रान्तों में जहाँ शीत अधिक पड़ता है और दरिद्रता भी बहुत अधिक होती है वहाँ कुछ और ही बातें दृष्टिगोचर होती हैं। शीत-प्रधान प्रान्तों में वस्त्रों की स्वच्छता की समस्या रुपये की समस्या है। जो मनुष्य दिन में भर पेट दो बार