पृष्ठ:दुखी भारत.pdf/३०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८८
दुखी भारत

याज्ञवल्क्य भी स्नान को आवश्यक धार्मिक कर्तव्य बतलाते हैं (अध्याय ३, श्लोक ३१४)"

यह आज्ञा केवल धर्मशास्त्र के पृष्ठों पर ही नहीं है। नियम यह है कि अपने साधारण स्वास्थ्य में प्रत्येक हिन्दू दिन में एक बार स्नान करता है। ठाकुर साहब लिखते हैं—'नियमानुसार प्रातःकाल के भोजन से पहले स्नान करना आवश्यक है। किन्हीं किन्हीं उच्च श्रेणी के हिन्दुओं में सन्ध्या के भोजन से पूर्व भी स्नान करने की प्रथा है और किसी अपवित्र वस्तु से छू जाने पर भी वे स्नान करते हैं।' इन्हीं आदतों के कारण हिन्दू लोग घमण्ड के साथ कहते हैं कि स्वच्छता में उनकी जाति संसार में सर्वश्रेष्ठ है।

योरप की जातियों में स्वास्थ्य के सम्बन्ध में कुछ ज्ञान होने से बहुत समय पूर्व और उनके दांतों की सफ़ाई करने के लिए ब्रुश और दैनिक स्नान का मूल्य समझने के भी बहुत समय पूर्व हिन्दू नियमानुसार दोनों पर आचरस करते थे। अब से केवल २० वर्ष पहले भी लन्दन के गृहों में स्नान के हौज़ नहीं होते थे और दांत साफ़ करने का ब्रुश रखना ऐश्वर्य्य समझा जाता था। ग्रेट ब्रिटेन और अमरीका दोनों देशों में लोग हिन्दुओं को उनके स्वच्छ दाँतों के लिए बधाई देते थे।[१] अब भी, अपनी समस्त वैज्ञानिक उन्नति के होते हुए भी योरपवासियों को शारीरिक स्वच्छता के सम्बन्ध में हिन्दुओं से बहुत कुछ सीखना शेष है। योरपियन लोगों के शृङ्गार का ढङ्ग सर्वथा अवैज्ञानिक और गन्दा है। स्नान के हौज़ आदि रोगों के कीटाणुओं और मैल के घर हैं। हिन्दुओं की स्वच्छता, स्नान और शृङ्गार के ढङ्ग सर्वोत्तम हैं। ऐसा कोई हिन्दू कदाचित् ही देखने में आवे जो शृङ्गार में जल का प्रयोग न करता हो या जो प्रतिदिन स्नान न करता हो और दांत न धोता हो। जो योरपियन लोगों की रहन-सहन का अनुकरण करने लगते हैं वे ही ऐसा नहीं करते हैं।

हिन्दुओं के चिकित्सा-सम्बन्धी ग्रन्थों में दिनचर्य्या (दैनिक कर्तव्य) के सविस्तर नियम दिये हुए हैं। इनमें प्रातःकाल उठकर दन्तमञ्जन या ताज़ी


  1. प्रसिद्ध दन्तमञ्जन बनानेवाले अँगरेज़ मिस्टर कोलगेट जो इसी शीतकाल में भारत-यात्रा के लिए आये थे इस देश के लोगों के स्वच्छ और सुन्दर दांत देखकर चकित रह गये।