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हिन्दुओं का स्वास्थ्य-शास्त्र

दाँतौन से दाँत साफ़ करना भी सम्मिलित है। प्राचीन हिन्दू-धर्म-ग्रन्थों से उद्धरण देते हुए ठाकुर साहब कहते हैं[१]:—

"स्वस्थ मनुष्य के लिए प्रातःकाल अर्थात् सूर्य्योदय से एक घण्टा पहले उठना अत्यन्त लाभकारी है। उठने पर उसे नित्य क्रिया से निवृत्त होना चाहिए......तब उसे दन्तमञ्जन से दांत साफ़ करना चाहिए। मञ्जन प्रायः तम्बाकू के चूर्ण, नमक और जली हुई सुपारी से या काली मिर्च, सोंठ, पीपर और फिटकिरी आदि ओषधियों को मिला कर पीस लेने से बनता है। सबसे अच्छी दांतौन बबूल की समझी जाती है। परन्तु चिकित्सा-ग्रन्थ अन्य वृक्षों की दांतौन अधिक हितकर बताते हैं। जिन लोगों को कतिपय रोग होते हैं उन्हें दांतौन करने की आज्ञा नहीं दी जाती। दांत साफ़ करने के पश्चात् एक पतली धातु की पट्टी से जिह्वा स्वच्छ करते हैं। यह पट्टी सोना, चांदी, या ताँबे की बनती है। दस अंगुल दांतौन को चीर कर दो करके एक टुकड़े से भी जिह्वा स्वच्छ की जाती है। तब ठण्डे पानी से कई बार कुल्ले किये जाते हैं और मुँह धोया जाता है। इस प्रयोग से मुँह में कोई रोग नहीं होता। ठण्डे पानी से मुँह धोने से झाईं, मुहासा, खुश्की और मुँह की जलन आदि रोग दूर होते हैं। गर्म पानी से मुँह धोने से वायु और कफ़ के विकार शान्त होते हैं और खुश्की भी नहीं होती। नाक को रोगों से बचाने के लिए उसमें प्रति दिन एक बूँद कड़ुवा तेल छोड़ते हैं। इस क्रिया से मुंह का स्वाद ठीक रहता है, कण्ठ निखरता है और बाल सफेद नहीं होते। शीशे या जस्ते की सलाई से आँखों में श्वेत सुरमा लगाने से आँखें सुन्दर हो जाती हैं और दृष्टि-शक्ति बढ़ती है। सिन्धु पर्वत का काला सुरमा बिना साफ किये भी लगाया जा सकता है। इससे खुजली, जलन, कीचड़ आदि दोष दूर होते हैं। आँखों में धूप की चमक और हवा के झोंके को सहने की शक्ति आती है।......नाखून, दाढ़ी और बालों को स्वच्छ रक्खा जाता है और उनकी काट-छाँट होती रहती है। हर पांचवें दिन बाल बनवाने और नाखन कटाने का नियम है। इससे बल, स्वास्थ्य, स्वच्छता और सौंदर्य की वृद्धि होती है।...... प्रतिदिन नियमानुसार व्यायाम करना चाहिए। व्यायाम से शरीर हलका और कार्य्य-शील रहता है, अङ्ग सुडौल और पुष्ट होते हैं, और पाचनशक्ति इतनी प्रबल हो जाती है कि जो भी मनुष्य खाता है सब शीघ्र हज़म हो जाता है। आलस्य से छुटकारा पाने की व्यायाम सर्वोत्तम ओषधि है।......भोजन के पश्चात् या दाम्पत्य-सहवास के पश्चात् व्यायाम करने से हानि पहुँचती हैं। जिन्हें दमा, क्षयी या अन्य फेफड़े के रोग हो उनके


  1. उसी पुस्तक से, पृष्ठ ५७ और आगे।

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