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विषय-प्रवेश


रहे हैं। और यदि अँगरेज़ चले जायँगे तो उसके तीन ही महीने बाद समस्त बँगाल में ढूँढने से न एक रुपया मिलेगा न कोई कुमारी कन्या।"

बेचारे पाठक को न तो राजा साहब का नाम बताया गया है न उनके चतुर दीवान का।

यह सोचकर मुझे वास्तव में बड़ा दुःख होता है कि बहुत से अँगरेज़ पुरुष और स्त्री ऐसे हैं जो अपने भारतीय मित्रों से एक बात कहते हैं और पश्चिम के विश्वास-पात्रों से दूसरी। जिन अँगरेज़ पुरुषों और स्त्रियों को मिस मेयो के परिश्रम के साथ बटोरे गये इस कूड़े को देखने का अवसर मिला होगा वे मेरा आशय अवश्य समझ जायँगे।

एक गिरे हुए भारतवर्ष की तलाश करने में मिस मेयो ने जिन्हें अपनी बातें सिद्ध करने का यंत्र बनाया भूल से उन्हीं को गिरा दिया है। और मज़ा यह कि ऊपर से डींग हाँकती है कि उसकी बातों को कोई न हिला सकता है, न गलत कह सकता है। मैं आशा करता हूँ कि मैंने इस लेख में यह दिखलाने के लिए उसकी बहुत सी बातें, निर्जनता से ली गई भी, ग़लत हैं, यथेष्ट प्रमाण दे दिये हैं। और एक साथ मिलकर तो उसकी सब बातें बिलकुल ही झूठा दृश्य खड़ा करती हैं......।

मिस मेयो ने मेरे एक सन्देश के बारे में लिखा। मुझे याद नहीं पड़ता कि मैंने वह सन्देश कभी दिया हो। उस समय जो व्यक्ति उपस्थित था उसे भी मेरे के साथ जोड़े गये इस सन्देश का स्मरण नहीं है। पर मैं जानता हूँ कि प्रत्येक अमरीका निवासी को जो मुझसे मिलने आता है, मैं क्या सन्देश देता हूँ :—

"समाचार-पत्रों का और अमरीका में आपको जो उड़ती खबरें मिलती हैं उनका विश्वास न कीजिए। यदि आप भारतवर्ष के सम्बन्ध में कुछ जानना चाहते हैं तो विद्यार्थी की भांति वहाँ जाइए और स्वयं उसका अध्ययन कीजिए। यदि आप नहीं जा सकते तो हिन्दुस्तान के पक्ष में और उसके विपक्ष में जो लिखा गया है उसका सबका अध्ययन कीजिए और तब अपनी राय निश्चित कीजिए। साधारण साहित्य जो आपको मिलता है उसमें या तो निन्दा का एक हाथ ककड़ी नौ हाथ बीज बनाया रहता है या स्तुति का।" मैं अमरीका और इंग्लैंड के निवासियों को मिस मेयो का अनुकरण न करने के लिए सावधान कर देना चाहता हूँ। वह अपने दावे के अनुसार यहाँ खुले-दिल नहीं बल्कि पहले ही से बने विचारों और विरोधी-भावों को लेकर आई थी। उन्हीं भावों को वह अपने प्रत्येक पृष्ठ पर प्रकट करती है। भूमिका का प्रकरण भी, जिसमें कि उसने अपने इस दावे को लिखा है, इन बातों से खाली नहीं है।