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हिन्दुओं का स्वास्थ्य-शास्त्र

लीजिए। और मनुष्य के हाथों पर—कन्धे और कोहनी के बीच के भागों पर—दूसरा नोकदार चाकू गड़ो दीजिए। जब रक्त निकल आवे तो उसमें वह पीब प्रविष्ट कर दीजिए। इस प्रकार शीतला का ज्वर आ जायगा।' यही आधुनिक टीका की भी विधि है। इससे यह बात स्पष्ट हो जायगी कि शीतला के जिस टीके को जेनर का महान् आविष्कार बताया जाता है वह प्राचीन काल के हिन्दू वास्तव में अपने प्रयोग में लाते थे।"

गवर्नर साहब ने और आगे भी कहा—'मैं कर्नेल किंग को एक और भी मनोरञ्जक खोज का उल्लेख किये बिना नहीं रह सकता। वह यह है कि प्लेग को शान्त करने और उनको फैलने से रोकने की वर्तमान पद्धति प्राचीन हिन्दू-शास्त्रों के मत से ज़रा भी भिन्न नहीं है।"

वैद्यक-शास्त्रों के इतिहास के सम्बन्ध में लार्ड एम्पथिल इस प्रकार लिखते हैं:—

"भारतवर्ष के लोगों को उनका (कर्नेल किंग का) कृतज्ञ होना चाहिए, क्योंकि उन्होंने हिन्दुओं का ध्यान इस बात की ओर आकर्षित किया है कि वे उस समय में भी, जब योरप महान् अज्ञानता और असभ्यता में निमग्न था, रोगनिवारक और रोगावरोधक-सम्बन्धी-चिकित्सा विधियों के जानने का दावा कर सकते हैं। मैं नहीं समझता कि यह बात सर्वसाधारण को ज्ञात है कि ओषधि-विज्ञान की उत्पत्ति भारतवर्ष में हुई थी। पर बात यही है। भारतवर्ष से यह विद्या अरब ने सीखी और अरब से योरप ने। सत्रहवीं शताब्दी के अन्तिम भाग तक योरप के चिकित्सक अर्बी चिकित्सकों के ग्रन्थ पढ़कर इस विषय का ज्ञान प्राप्त करते रहे थे। और अर्बी चिकित्सकों ने शताब्दियों पूर्व यह ज्ञान धन्वन्तरि, चरक और सुश्रुत जैसे भारतीय चिकित्सकों के ग्रन्थों से प्राप्त किया था।"

भारतवर्ष की वर्तमान रुग्णावस्था और गन्दगी का कारण है सर्वसाधारण की दरिद्रता। अपने पास-पड़ोस को स्वच्छ बनाये रखने के लिए वे यथेष्ट धन व्यय नहीं कर सकते। और दरिद्रता के कारण उनकी शारीरिक निर्बलता उन्हें तत्काल महामारियों में फंसा देती है। यदि भारतवर्ष 'संसार के लिए सङ्कट' हो रहा है तो इसका अधिकांश दोष सरकार का है; क्योंकि वह शिक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बड़ी कञ्जूसी के साथ व्यय करती है। नवीन परिस्थितियों ने, जिनसे भारतवर्ष की वैसी उन्नति नहीं हो