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बाईसवाँ अध्याय
गाय भूखों क्यों मरती है?

मिस मेयो की पुस्तक में १७ वें अध्याय से लेकर २० वें अध्याय तक में गाय के सम्बन्ध में विचार किया गया है। १७ वें अध्याय का शीर्षक है 'मुक्ति की फौज का पाप'। परन्तु इस अध्याय के अन्त में एक पादटिप्पणी के अतिरिक्त 'मुक्ति की फौज' का कहीं उल्लेख नहीं मिलता। इसके अतिरिक्त यंग इंडिया से लिये गये एक उद्धरण में इसका थोड़ा-सा उल्लेख हो गया उस पर हम शीघ्र ही विचार करेंगे। इस अध्याय के गीत का टेक यह है कि 'हिन्दू अपने लिए भोजन उत्पन्न करते हैं परन्तु अपनी गाय माता के लिए भोजन नहीं उत्पन्न करते; इसीलिए वह भूखों मरती है।'

मुक्ति की फौजवाले अध्याय में मुक्ति की फौज का उल्लेख केवल २०६ पृष्ठ पर पाया जाता है। वहाँ मिस मेयो ने महात्मा गान्धी के एक संवाददाता श्रीयुत देसाई को यह कहते हुए उपस्थित किया है कि—'प्राचीन काल में और मुसलिम शासन-काल में भी पशुओं के चरने के लिए पृथक् भूमि का प्रबन्ध रहता था और उन्हें जङ्गलों में भी स्वतन्त्रता के साथ चरने से नहीं रोका जाता था। जो लोग गाय पालते थे उन्हें उसके खिलाने के लिए जो व्यय करना पड़ता था वह प्रायः कुछ नहीं के बराबर होता था। परन्तु ब्रिटिश सरकार ने इन पशुओं की, जो न तो स्वयं कुछ कह सकते हैं न अपनी ओर से कुछ कहने के लिए अपना कोई प्रतिनिधि रखते हैं, वंश-परम्परा से प्राप्त इस सम्पत्ति पर लोभ की दृष्टि लगा दी और इसे कभी भूमि-कर में वृद्धि के उद्देश्य से तथा कभी अपने मित्रों को—जैसे ईसाई-धर्म-प्रचारकों को—अपना आभारी बनाने के उद्देश्य से उनसे छीन लिया।' इस पर मिस मेयो लिखती है—'तब यह लेखक अपने कथन को पुष्ट करने के लिए लिखता है कि गुजरात में एक बार सरकार ने ५६० एकड़ गोचर-भूमि 'मुक्ति फौज' को खेती करने के लिए दे दी थी।'