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दुखी भारत

कता है। इसलिए राज्यों ने क़ानून बनाये हैं कि गाय की भलीभांति रक्षा की जाय और लोगों को यथेष्ट, अच्छा और सस्ता दूध मिले; इस सम्बन्ध में भारत सरकार ने व्यावहारिक रूप से कुछ नहीं किया; केवल इसलिए कि वह इस देश के निवासियों और यहाँ के शिशुओं की अपेक्षा सेना और योरपियन-नौकरों को अपने लिए अधिक आवश्यक समझती है। भारत- सरकार के लिए यहाँ के निवासियों के स्वास्थ्य की ओर ध्यान देना बिलकुल एक गौण विषय है। अमरीका के संयुक्त राज्य में सरकार ( फेडरल या नगर-सम्बन्धी ) का यही प्रथम कर्तब्य है। अपनी पुस्तक के एक सिरे से लेकर दूसरे तक मिस मेयो ने इस प्रधान विषय की अवहेलना की है और मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि उसने यह अवहेलना अन्याययुक्त और पक्षपातपूर्ण उद्देश्यों के कारण की है।

अपनी पुस्तक में २१० वें पृष्ठ पर वह लिखती है---महात्मा गान्धी के संवाददाता ने गाय की भूख के रूप में हमें ब्रिटिश-शासन का एक दोष दिखलाया है। इसमें सन्देह नहीं कि वर्तमान भयङ्कर 'स्थिति' का बहुत कुछ उत्तरदायित्व ब्रिटिश-शासन पर ही है। इस सम्बन्ध में ब्रिटिश शासन के उत्तरदायित्व से उसका जो तात्पर्य है, उसका आगे चल कर वह इस प्रकार खुलासा करती है:---

"इस शासन-प्रणाली का ( प्राचीन शासन-प्रणाली का ) स्थान ब्रिटिश लोगों को सौंपा गया। इसमें सौंपनेवालों का सर्वप्रथम उद्देश्य इतना ही था कि इस देश की डकैती, युद्ध और बर्बादी से रक्षा हो तथा यहाँ शान्ति स्थापित हो। यह कार्य प्रायः वही था जो अमरीकावासियों को फिलीपाइन्स में करना पड़ा था। जो सफलता हमें फिलीपाइन्स में मिली वही अँगरेज़ों को भारतवर्ष में प्राप्त हुई। हाँ, इसमें अँगरेज़ों को क्षेत्रफल और जन-संख्या की अधिकता के कारण कुछ देर अवश्य लगी। ब्रिटिश ने अपना यह कार्य, जो सब प्रकार की शक्तियों की अपेक्षा रखता था, प्रायः अब से ५० वर्ष पहले ही पूरा कर दिया था। इसके शासन के अधीन जीव प्राण और धन की जितनी रक्षा और हिफ़ाज़त होनी चाहिए कदाचित् उतनी हो गई है। महामारियाँ रोकी गईं और अकाल से भी लोगों को बहुत कुछ बचाया गया। इसलिए पहले जिन शत्रुओं के कारण धन और जन की क्षीणता हो रही थी, उनसे समुचित रक्षा की व्यवस्था होने पर मनुष्यों और