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गाय भूखों क्यों मरती है?

पशुओं की संख्या समान रूप से बढ़ने लगी। और मनुष्यों को भोजन अवश्य मिलना चाहिए। इसलिए सरकार ने उनकी आवश्यकतानुसार उन्हें पट्टे पर भूमि दी ताकि वे अपने लिए भोजन उत्पन्न कर सकें और मृत्यु से बचें।"

यह समझ में नहीं आता कि इस प्रलाप का गाय या 'मुक्ति की फौज' से क्या सम्बन्ध है। परन्तु यह संक्षिप्त पैराग्राफ भी असत्य वक्तव्यों से परिपूर्ण है––(१) 'इस प्रणाली का स्थान ब्रिटिश लोगों को सौंपा गया'। किसने सौंपा? किसने उन्हें भारतवर्ष में शान्ति स्थापित करने के लिए निमन्त्रित किया? वे केवल अपने लाभ के लिए आये। और केवल उसी लाभ के लिए यहाँ बने हैं। (२) 'ब्रिटिश ने अपना यह कार्य...............५० वर्ष पहले ही पूरा कर दिया था।' मिस मेयो को यह जानना चाहिए था कि सरकार ने अपने राज्य में जो देश अन्तिम बार जीत कर मिलाये उन्हें ७५ वर्ष से ऊपर हो गये अर्थात् वे १८४९ में जीत कर मिलाये गये थे। और भूमिकर के बन्दोबस्त से बङ्गाल, बिहार और संयुक्त-प्रान्त का नाश तो उससे भी पहले कर दिया गया था। (३) 'ब्रिटिश शासन में प्राण और धन की सुरक्षा' अब भी नहीं है (सीमा प्रान्त के युद्धों और आक्रमण और बलवों आदि का वर्णन देखिए।) (४) 'सर्वनाश करनेवाली महामारियां' अब भी देश में विद्यमान हैं और अकाल की गणना तो प्रतिदिन की घटनाओं में है। रेल और दरिद्रता के कारण महामारियों का प्रकोप शीघ्र शीघ्र और अधिकाधिक वेग से होने लगा है। जन-साधारण की दरिद्रता और मूर्खता से महामारियों का पोषण होता है और अकाल पड़ते हैं। मिस मेयो की पुस्तक के 'संसार का संकट' नामक अध्याय से भी किसी अंश तक इसी बात का समर्थन होता है।

श्रीयुत अरनाल्ड लप्टन ने मिस मेयो के उपर्युक्त कथनों का बढ़ा सुन्दर उत्तर दिया है। भारतवर्ष की खाद्य-सामग्री पर विचार करते हुए वे लिखते हैं[१]:––

"इसके अतिरिक्त इन अङ्कों में से अन्न का उतना भाग कम कर देना चाहिए जो पशुओं के काम आ जाता है। पशुओं की संख्या भी उतनी ही है


  1. अरनाल्ड लप्टन, हैपी इंडिया। लन्दन, जार्ज एलन और अनविन १९२२, पृष्ठ १४४-८।