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दुखी भारत

ये बड़े बड़े अवतरण मैंने महात्मा गान्धी के लेखों से दिये हैं। क्योंकि सबकी राय से वर्तमान भारतवासियों में वेही सबसे बड़े पुरुष, सबसे बड़े महात्मा और सबसे बड़े सत्यवादी समझे जाते हैं। यह दूसरी बात है कि मिस मेयो उन्हें साधुता में सिविल सर्विस के कर्मचारियों और इस देश के ईसाई धर्म-प्रचारकों की बराबरी करने योग्य भी न समझे। जैसा कि उसने एक पत्र-संवाद-दाता से बात करते हुए दबे स्वर में कहा भी था। पर महात्मा गाँधी को भी उसने अपनी पुस्तक में लिखे अनुसार भारत और पश्चिम के लोगों की पारस्परिक गणना की कसौटी में ही रक्खा है। महात्मा गाँधी के बाद दो भारतीय और हैं जिन्हें ऐसी सार्वदेशिक प्रसिद्धि जो एशियाई और पराधीन देश के बेटों के लिए अपार गौरव की बात है, प्राप्त है? एक हैं कवीन्द्र रवीन्द्रनाथ ठाकुर जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने बहादुरी की और उसके विश्वविद्यालयों ने डाक्टर की उपाधि दी है और जिन्होंने 'नोबुल प्राइज़' जीता । दूसरे हैं श्रेष्ठ विज्ञान-वेत्ता डाक्टर सर जे० सी० बोस, एफ० आ० ए० एस०।

कबीन्द्र दो अवसरों पर इस पुस्तक के सम्बन्ध में अपना मत प्रकट कर चुके हैं। (१) “मैंनचेस्टर गर्जियन को स्व-लिखित एक पत्र में (२) निउयोर्क के 'नेशन' को स्वलिखित दूसरे पत्र में। अन्यन्त्र हम दोनों के कुछ अंश प्रकाशित करेंगे।

डाक्टर बोस इसे ध्यान देने के अयोग्य और गन्दी किताब कहते हैं।

पुस्तक के अखीर में हम मदर इंडिया के बारे में कुछ ऐसे प्रभावशाली पुरुषों की राय एक साथ दे रहे हैं जो भारतवर्ष को मिस मेयो से अधिक जानते हैं। रवीन्द्रनाथ ठाकुर उसे इस बात का दोषी ठहराते हैं कि उनके लेखों का उसने बिना किसी उत्तरदायित्व के और जान बूझ कर धूर्तता के साथ उपयोग किया है। स्वर्गीय लार्ड सिनहा, जिनके अतिरिक्त कोई भारतीय कभी किसी सूबे का गवर्नर नहीं हुआ, महात्मा गान्धी से इस बात में पूर्णरूप से सहमत हैं कि 'मिस मेयो ने भारतवर्ष के समस्त नाबदानों को खूब अच्छी तरह सूंघा है।' वे उसकी पुस्तक को 'एक असत्य और मिथ्या-चित्र' बतलाते हैं। भारतीय ईसाई सभा की कार्यकारिणी